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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४४५ तब शीतलप्रसादजीने जबलपुर, सिवनी, छिन्दवाड़ा, दमोह आदिके भाइयोंको सूचना दी कि शेठ माणिकचंदजी श्री कुंडलपुरकी यात्रार्थ आयेंगे, आप लोग मित्रमंडळीसह पधारें । नाथूराम प्रेमी के यात्रा । सेठ साहब बाबू शीतलप्रसाद और श्रीयुत साथ ता० १५ मार्चकी शामको बम्बई से श्री कुंडलपुरकी चलकर ता० १६ को बीना स्टेशनपर आए । यहांसे २ मील दूर एक धर्मशाला में ठहरे । यहांसे शहर बीना - इटावा २ मील था । दर्शनार्थ गए | यहांसे शामको ही चलकर १२ बजे रात्रिको दमोह स्टेशनपर पहुंचे । बाबू गोकुलचंद वकील जिनको पहले से खबर की गई थी, १०० भाइयोंको लेकर स्वागतार्थ स्टेशनपर आए थे। बड़ी भक्ति से नगर में लाए और धर्मशाला में ठहराया । यहाँ १२५ घर परवारोंके हैं, संख्या ४५० है, जिनमंदिरजी ६ हैं । वर्षाके कारण ता० १७ व १८ को यहीं ठहरे । ता० १७ की रात्रिको मंदिरजीमें सभा हुई । धर्म विषयपर व्याख्यान हुआ । ता० १८ की शामको बैलगाड़ी में चढ़कर २० मील चल ता० १९ को सवेरे कुंडलपुर क्षेत्र में आए। यह क्षेत्र दमोह स्टेशन से २० व बांदकपुर से १५ मील है | कुंडलपुर एक रमणीक और मनोहर गांव है, जो पहाड़की तलहटी में बसा हुआ है। पहाड़का आकार कुंडलके समान है । पर्वतपर २२ तथा तलहटीमें २१ जिन मंदिर हैं । पर्वत से सबसे ऊंचा उत्तरकी ओर छः घरियाजीका मंदिर है जिसपर पहुंचनेको नीचेसे ५०० सीढ़ियां ऐसी बनी हैं कि एक बालक भी सुगमता से चढ़ सक्ता है । पर्वतके मध्य भागमें श्री वर्डमान स्वामीका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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