SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 511
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय दशवां। woman विशाल पत्थरका बना हुआ मंदिर है जिसमें लाखों रुपयोंकी लागत . आई होगी। इसमें श्री वीरभगवानकी एक विशाल और दर्शनीय पद्मासन योग प्रतिमा है जिसकी ऊंचाई ४॥ गन व चौड़ाई ३ गनके अनुमान है । यह प्रतिमा बहुत प्राचीन कालकी है। संवत नहीं है, दर्शन करते मन तृप्त नहीं होता । मंदिरजीके जीर्णोद्धारका एक शिलालेख संवत १७५७का है जो द्वार पर लगा है। पहाड़पर और मंदिरोंमें जानेके मार्गमें भी पत्थर जड़ा हुआ है इससे सर्व मंदिरोंकी वंदना ३ घंटे में हो जाती है। सेठ साहबके आगमनको जानकर सिवनीसे श्रीमान् सेठ पूरणशाह आनरेरी मनिष्ट्रेट, खूबचंदनी, धन्नालालनी, मिहनलालनी, जुगरानसाहनी; छिन्दवाड़ासे सिंहई खेमचंद आनरेरी मनिष्ट्रेट आदि; जबलपुरसे सिंहई गरीबदासजी, भोलानाथनी आदि बहुतसे भाइयोंको लेकर आए थे। कुल संख्या २००० की होगी। मेलेके प्रबन्धक सेठ बिन्द्रावनजी दमोह थे । सेठ माणिकचंदनी साहबकी चेष्टा और प्रेरणासे ता० १९, २०, २१ को दिन में तीर्थकी सभाएं और रात्रिको उपदेशक सभाएं हुई। दिनकी सभाओंमें क्रमसे सेठ माणिकचंदनी, सेठ बिंद्रावनजी और सवाई सिंहई खेमचन्दनी सभापति हुए । इनमें ८ प्रस्ताव पास हुए । सेठजी सच्चे तीर्थभक्त व सुधारक थे। आपकी पूर्ण प्रेरणासे इस क्षेत्रके प्रबन्धार्थ एक कमिटी ७ सभासदोंकी बनी जिसके सभापति व कोषाध्यक्ष सेट बिन्द्रावन व. मंत्री बाबू चन्नेलालजी हुए। पहला प्रस्ताव यही स्वीकार कराया गया। यहां १५ दिन मेला रहा करता था जिससे लोग आते जाते रहते थे-जमते न थे, इससे दूसरा प्रस्ताव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy