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________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१४७ सेठ माणिकचंदको सिंह समान तेजस्वी, २२ वर्षका नवयुवक और बलिष्ठ देखकर बहुतही आनन्दित हुए और ऐसा उत्तम सम्बन्ध प्राप्त करलेनेके निमित्त शाह पानाचंद दोभाडाकी बुद्धिमानीकी खूब प्रशंसा करने लगे। शुभ महूर्तमें लग्नादिक क्रियाएँ हुईं। जिस समय सेठ माणिकचंदका हाथ चतुरमतीके हाथसे मिलाया गया उस समय दोनोंको परस्पर स्पर्श होनेसे ऐसा हर्षभाव हुआ कि जैसा किसीको अमृतरसके पीने व चिन्तामणि रत्नके लाभसे होता है । सो बात ठीक ही है जहाँ प्रेमभावका सम्बन्ध होता है वहीं अपनी कल्पनासे रतिपना झलकता है। सांसारिक सुख मनकी कल्पनाका फल है । इस विवाहमें श्री जिनमंदिरजीको व अन्य स्थानोंको दान धर्म भी अच्छी तरह किया गया। इस विवाहको पूर्ण करके और नवीन वढूको लिवाकर सेठ __ हीराचंदनी बम्बई आए और थोड़े दिन सुरूपमतीकी पुत्रीका खसे रहे कि एकाएक सेठ मोतीचंदकी पुत्री परलोक। एक रात्रिको अतिशय शीत पवनके लग जानेसे बीमार पड़ गई। कुछ दिनतक बीमार रही। उसके अच्छे होनेके लिये खूब रुपये खर्च हुए पर वह अच्छी न हुई। उसकी आयुका अंत आन पहुंचा और वह सारे कुटुम्बको उदास करके व रूपवतीको अतिक्लेशित अवस्थामें छोड इस जड़मयी शरीरको छोड़कर चलदी-उसका आत्मा अन्य पर्यायको प्राप्त हो गया। ___ इस समय सेठ हीराचंदजीको जो दुःख हुवा, रूपमतीको Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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