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१४६ ] अध्याय पाँचवाँ । मिले और वातचीत करके व जन्मपत्र आदि देख दिखा कर इस सम्बन्धका पक्का निश्चय कर लिया और शीघ्र ही विवाहकी मिती तय करली।
एक दिन सेठ हीराचंद मोतीचंद और पानाचंदको माणिकचंदके इस सम्बन्ध होनेकी बात कह रहे थे व चतुरमती कन्याकी बहुत प्रशंसा कर रहे थे, कारणवश सेठ माणिकचंद भी उस समय घरमें आए
और उनके कानमें यह सब शब्द सुन पड़े। इन शब्दोंके सुननेसे सेठ माणिकचंदनीको जो हर्ष हुआ वह वचन अगोचर है। वह जिस रूपको अपने चित्तमें बिठा चुके थे, जिसकी मूर्तिका नक्श अपने अंत:करणकी भूमिपर जमा चुके थे, जिसके पुष्प गुणोंकी सुगंध अपनेको स्पर्शित करानेके लिये आकर्षण कर चुकी थी, उसके लाभका दृढ़ निश्चय जानकर, उससे साक्षात्कार होनेका दृढ़ विश्वास कर व उस मूर्तिके साक्षात् ग्रहणका उमंग धारकर सेठ माणिकचंद अपनी युवावस्थाके निमित्त काम भावके विचारों में उलझकर मन मोदक बनाने लगे।
२२ वर्षकी आयु धारी सेठ माणिकचंदकी वारातमें बम्बई व सूरतके बहुतसे हमड़ोंको लेकर सेठ हीराचंद दक्षिणकी ओर रवाना हुए।
वहाँपर महाराष्ट्रदेशकी शोभा इनको गुजरातकी अपेक्षा एक . विलक्षणता बताती थी। सेठ हीराचंदने अपने पुत्रोंसे सम्मति करके इस विवाहमें ३०००) रु. खर्च करनेका निश्चय किया। बहतही धूमधामसे नान्नज़नवला ग्राममें बारात पहुँची। गांववाले बम्बईके सेठों व सुरतके गुजरातियोंकी पगड़ियोंको देखकर आश्चर्यान्वित हुए और चतुरमतीके भाग्यकी सराहना करने लगे । सारे ही गांववाले
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