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________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम | [ १४५ दोभाड़ा भी आए । इनको देखते ही सेठ हीराचन्दने निश्चयकर लिया कि यही वह कन्या है जिसके लिये माणिकचन्दको दोभाडानीने चाहा है । इसको विनयसे दर्शन करते, सामग्री चढ़ाते, स्तुति करते, प्रदक्षिणा देते व नमस्कार करते हुये देखकर हीराचंदजी बहुतही राजी हुए तथा इसके गुणोंकी झलकसे हीराचंदजीको निश्चय हो गया कि माणिकचंदको हर प्रकार प्रसन्न करनेवाली यह कन्या होगी। उधर सेठ माणिकचंदजी भी स्वाध्याय कर रहे थे । एकाएक वे उठे और उनकी दृष्टि इस कन्याके मुखपर पड़ी, पड़नेके साथ ही इनका मन उसको अपने अंतःकरण में रखकर लोभायमान हो गये । दक्षिण व गुजरातकी स्त्रियों में परदा रखनेका रिवाज न अब है और न पहिले था । यह परदेका रिवाज बंगाल, विहार, युक्तप्रांत और पंजाब में मुसल्मानोंके विशेष सम्बन्धसे ही चला हैं । वह कन्या अपनी माता के साथ एक कोनेमें जाप करने बैठ गई । साह पानाचंद भी जाप पाठ करने लगे। अपने स्वाध्याय करनेके स्थान पर सेठ माणिकचन्द्रजी फिर बैठकर एक और शास्त्रको निकाल बाहरसे देखने लगे पर इनका मन उस कन्या के ख्याल में उलझ गया था । उधर वह कन्या जब अपनी माताके साथ उठी और चलते हुए जब फिर श्री जिनेन्द्रके, सन्मुख नमस्कार करनेको आई तब नमस्कार करने के पीछे चलते हुए उसकी दृष्टि सेठ माणिकचंद पर पड़ी और उसके हृदयने उसको यही गवाही दी कि यदि यह कुमारे हो तो मेरे पति होने योग्य यही हैं । इस कन्याकी अवस्था अनुमान १६ वर्षके होगी । दूसरे समयपर शाह पानाचंद दोभाड़ा सेट हीराचंदजी से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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