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________________ १४४ ] अध्याय पाँचवाँ | साथ परणाएंगे। शाहजी सेठ हीराचंदसे मिले और अपनी इच्छा प्रगट की। सेठ हीराचंद भी यह चाहते थे कि माणिकचंद की आयु अब २२ वर्षकी हो गई है अतएव इसका विवाह हो जाना ही मुनासित्र है, पर सेठजी बहुत चतुर थे । वे ही रेको विना देखे हीरा कहनेवाले नहीं थे । शाह पानाचंदजीको कहा कि यदि आपकी इच्छा अपनी कन्या देने की है तो एक दफे आप उसे लेकर बम्बई आइये, मैं उसे देखकर व जन्म पत्री जांचकर आपसे पक्का सम्बन्ध करूंगा । साह पानाचंदको तो यह खटका था, शायद सेट माणिकचंदकी सगाई कहीं और हो गई हो तो हमें निराश होना पडेगा सो अब वह शंका निकल गई और यह निश्चय हुआ कि अवश्य मेरी मनोकामना पूर्ण होगी क्योंकि वह कन्या भी एक भाग्यशाली है । कौन ऐसा है जो उसके गुणों को पसन्द न करें ? पानाचंदने सेठ हीराचंदजीको कहा कि आपकी इच्छानुसार ही कार्य्य होगा । कुछ काल पीछे दोभाड़ाजी बम्बई में व्यापारिक काम करके लौटे और अपनी पत्नी व चतुरमतीको साथ लेकर श्री कुंथलगिरीकी यात्रा करते हुये बम्बई पधारे और अवसर पाकर सेठ हीराचंदजीको खबर दी कि कल आप मंदिरजीमें मेरी कन्याका निरीक्षण करें। दूसरे दिन साह पानाचंद दोभाड़ा सपत्नीक चतुरमती के साथ श्री जिनमंदिरजी गए । उस समय सेठ हीराचंद स्वाध्याय से निवृत्त हो समतासे बैठे थे इतने में देखते क्या हैं कि एक कन्या चंद्रमा के समान अपनी मुखकी सौम्यताको प्रगट करती हुई बहुत विनयके साथ मुंह नीचा किये जमीनको देखती हुई हाथमें एक वाट - की में सामग्री लिये हुए अति कोमलाङ्गी सुबड़पनेको धारे हुए एक बड़ी स्त्रीके साथ मंदिरजीके भीतर आई । पीछेसे शाह पानाचन्दजी A For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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