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युवावस्था और गृहस्थाश्रम ।
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करते थे सर्व बड़ी ही खुशीसे राजी हो जाते थे। सेठ माणिकचंद परोपकारी व धर्मत्मा हैं यह देखकर सर्व भाइयोंको बहुत ही हर्ष होता था। इस कारण माणिक चंदनीका सुयश अभी ही से दूर दूर तक फैलना शुरू हो गया था। बहुतसे परदेशी हूमड़ बम्बईमें आकर जब यह मालूम करते कि सेठ माणिकचंदजी अभी तक कुमारे हैं तब उनके चित्तमें यह इच्छा हो उठती कि हम अपनी कन्या ऐसे ही योग्य पुरुषको परणावे तो उसका जन्म सफल हो । - शोलापुरे जिलेके करमाला तालुकेके नानेजजवाला
ग्रामनिवासी एक मुख्य हुमड़ साह पानाचंद सेठ माणिकचंदजीका उगरचंद दोभाड़ा भीएक दफे बम्बई आये बिवाह। और सेठ माणिकचंदको प्रत्यक्ष देखकर
बहुत ही प्रसन्न हुए । इनके तीन कन्यायें और एक पुत्र था। जिनमें दो कन्यायोंका विवाह हो चुका था और तीसरी कन्या कुमारी थी जो बहुतही सौम्य शरीर, गुणशाली
और चतुर थी, जिसका नाम भी चतुरमती था। इसकी माताका नाम माणिकबाई था। इस कन्याके लाभसे मातापिताको बड़ा भारी हर्ष था और इसे सब ही चाहते थे। यह अपने मातापिताकी आज्ञानुसार चलनेवाली व माताके सिखानेसे घरके कामकाजमें अति प्रवीण हो गई थी। मातापिता यह चाहते थे कि इसको किसी 'प्रसिद्ध पुरुषके साथ ही परणाया जाय । सुरतके इन चारों भाइयोंकी कीर्ति दूर २ तक इमडोंमें फैली हुई थी। शाह पानाचंद दोभाड़ा माणिकचंद सेठको कुमारा जानकर बहुत ही संतोषित हो अपने चित्तमें यही ठानते हुए कि हम अपनी चतुरबाईको इन्हींके
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