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अध्याय पाँचवाँ |
चारों भाईयोंमें सेठ माणिकचन्दकी आदत मिलनसारीकी अच्छी थी। यह सबसे मिलते, उनके दुःख सुखको पूंछते और जो कुछ अपनेसे बनता मदद देते थे । पाठकों को मालूम ही है कि यह रोज श्री जिनमंदिरजीमें प्रछाल पूजन स्वाध्यायादि कार्य्य बड़े प्रेमसे करते थे । बम्बई नगरमें व्यापारादि अनेक कार्योंके निमित्त बहुधा अनेक देशों के जैनी भाई आते और जब वे दर्शनार्थ मंदिरजीमें जाते तो जहाँ तक सेठ माणिकचन्दजीकी दृष्टि पड़ती व मौक़ा होता यह अवश्य उन सबसे मिलते, उनका हाल पूछते और उनके कामकाजमें हर तरह सहायता देते थे। बहुत से दक्षिण व उत्तरके जैनियोंके लौकिक और धार्मिक काम उक्त सेठकी मदद से हो जाते थे । इनके प्रतिदिनका थोड़ा समय इस प्रकार के परोपकार में भी जाता था । कई भाई जो आजीविका बम्बई आवे उनको यह आ जीविकामें जोड़ देते व जब तक विना क्रय कमाए उनको दो चार मास रहना पड़ता यह उनके भोजन खर्चका व ठहरनेका प्रबंध भी कर देते थे । छोटे व बड़े सबके साथ बहुत ही प्रीतिसे बात करना इनका एक जातीय स्वभाव था । अन्य तीन भाइयोंमें मिलनसारीका गुण बहुत ही साधारण था । यदि कोई चाह करके वात करता तो ये सुनकर उसको उत्तर देते थे । ये तीनों भाई अपने नित्य चालू काम करने में ही दत्तचित रहते थे परोपकार की खोज नहीं करते थे तो भी अभिमानी व संकुचित चित्त नहीं थे । जिस परोपकारके काममें सेठ माणिकचंद द्रव्य खर्चनेकी इच्छा प्रगट
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- माणिकचंदका परोपकारी स्वभाव |
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