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युवास्था आर गृहस्थाश्रम ।
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का जन्म दिया । यद्यपि इससे सेठ हीराचंदजीकी वह आशा पूरी नहीं हुई क्योंकि संसार में सर्व ही काम इच्छानुसार होना अतिशय दुर्लभ है तथापि पुत्रीके होनेमें भी यथायोग्य दान पूजा व उत्सव मनाया गया । गांधी मोतीचंद को भी बहुत हर्ष हुआ । रूपवती इस कन्याको प्राप्त कर बहुत तृप्त हुई और बहुत होशियारी से उसे पालने लगी । अत्र सेठ हीराचंद के कुटुम्बको एक धनाढ्य, न्यायवान गृहस्थीको जैसा संतोष होता है ऐसा संतोष रहने लगा, सो ठीक ही है, जब पुण्यका उदय होता है तब सांसारिक अवस्थाएं साताकारी प्राप्त होती हैं ।
उधर व्यापार में भी दिनपर दिन वृद्धि हो रही थी। जो मोतीका व्यापार पहले साधारण था वह अब पुण्योदय से व्यापार में बहुत बढ़ गया था । यह मोतीके बड़े व्यापारी बाजार में माने जाने लगे । संवत् १९३०
वृद्धि ।
तक इनके यहाँ लक्ष्मीका अच्छा वास हो चला । इस सालसे यह थोकबंध माल एकत्रकर बम्बई में व परदेशमें भी बेचने लगे । हूमड़ दिगम्बरियों में इनको सर्वसे पहले सफलीभूत सुनकर इधर उधरके बहुत से दिगम्बरी हूमड़ व्यापारार्थ बम्बई आने लगे और अपने२ ग्राम लौटकर इन सेठोंके व्यापार, सादे स्वभाव और कीर्तिकी महिमा गाने लगे । यह भी एक बड़े महत्वकी बात इन चारों भाइयों में थी कि लक्ष्मीकी वृद्धिके साथ विनय, नम्रता और सादगी बढ़ती जाती थी- अभिमान तो पास छूकर नहीं निकलता था ।
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