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________________ १४० ] अध्याय पाँचवाँ । फूलकुमरी करीब १४ वर्षकी थी, पर शरीरमें सुकुमारपना अधिक होनेसे बहुधा अस्वस्थ रहा करती थी। शुभ मुहूर्तमें दोनोंका पाणिग्रहण हुआ । सूरत नगरमें इस विवाहकी खूब धूमधाम हुई । सेठ हीराचंद और सेठ घेलामाई तासवालाने संबंधियोंका यथायोग्य सत्कार करनेमें कोई त्रुटि नहीं की। . सेठ हीराचंद अपने दो पुत्रोंका विवाह कर बहुत ही संतुष्ट हुए । इनमें किसी तरहका अपयश न पाते हुए अपनेको कृतार्थ मानते हुए। थोड़े दिनोंके बाद मोतीचंद और पानाचंदकी पत्नियाँ बम्बईमें आ गई । अब सेठ हीराचंदको अपने हाथसे रूपवतीका सुघडपना। रसोई बनानेसे छुट्टी मिली। ये दोनों स्त्रियां घरका सर्व काम कर लेती थी। दोनोंमें विशेष चतुर रूपवती थी जो अकेले ही सर्व कामकाज करनेमें निरालस्य थी। पानाचंदकी स्त्री निर्बलशरीर होनेके कारण घरके काममें अधिक मदद नहीं दे सकती थी तौभी रूपवतीको इसका कोई दुःख न था, जैसा बहुधा स्त्रियोंमें हो जाया करता है कि परस्पर द्वेष व ई भावसे प्रेम नहीं रखते सो बात इन दोनोंमें न थी। रूपवती बहुत ही सहनशील, समझदार और धर्मात्मा थी। बहुत ही आनन्दसे सारे कुटुम्को हर तरह तृप्त रखती.थी। थोडे ही दिन पीछे रूपवती गर्भावस्थाको प्राप्त हुई । सेठ हीराचंद और मोतीचंदके दिलमें बहुतही हर्ष रूपवतीको कन्या हुआ । सेठ हीराचंदको आशा हुई कि अब लाभ। पौत्रका मुख देखूगा और जन्मोत्सव भले प्रकार करूंगा । ९ मास पीछे रूपवतीने पुत्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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