SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१३९ अब इसकी अवस्था १६ वर्षकी थी। यद्यपि ईडरमें और लोग अपनी २ कन्याओंकी लग्न १२, १३ वर्ष ही में कर देते हैं पर यह खास लग्न बम्बईवालोके सम्बन्धके निमित्तसे इस अवस्थामें हुई । यदि देखा जाय तो १६ और २५ वर्षीया सम्बन्ध बहुत ही प्रौढ़ और योग्य होता है । कन्या रूपवती अपने पतिको अति दृढ जवान देखकर बहुत प्रसन्न हुई। जातिकी रसमके अनुसार लग्नादि क्रियायें हुई । गांधी मोतीचंदने बरातियोंका बहुत ही सन्मान किया, किसी प्रकारकी दिल मैली न हुई जैसी कि बहुधा आजकलके मूर्ख सम्बन्ध करने वालों में हो जाया करती हैं । शुभ महूर्तमें बारात विदा होकर ईडरसे सुरत आई।सूरतमें अपने जन्मके मकानमें ही सेठ मोतीचंद आदि ठहरे । वहाँ अपनी नव वधूको देखकर यह बहुत ही गदगद वदन हो गए और ऐसी सौम्य व रूपवान वधूको पाकर अपने पुण्यके तीव्र उदयको मानते हुए। कुछ दिनों बाद रूपवतीका अपने पिताके घर आना हुआ । सेठ मोतीचद व्यापारार्थ बम्बई आ गए । अभी इनको अपनी पत्नीसे सांसारिक प्रेम करनेका अवसर प्राप्त नहीं हुआ था। सेठ हीराचंदजीने सुरतमें आकर सेठ घेलाभाई धरमचंदजी ___ तासवालाकी कन्या फूलकुमरीसे पानाचंदसेठ पानाचंदका की लग्न करनेका निश्चय किया, चार मास विवाह। पीछे ही विवाहकी मिती नियत की। सेठजी बम्बई गए और पहलेकी तरह इस विवाहमें भी २०००) रु० खरचनेका निश्चय करके ठीक मिती पर विवाहका प्रबन्ध हुआ। पानाचंदकी अवस्था २३ वर्षके अनुमान थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy