SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८ ] अध्याय पाँचवाँ । निगाह में आता है और खरीदा जाता है उसमें लाभ ही होता है। आप दिल खोलकर खर्च कीजिये | अपने भाग्यके अनुसार हम और बहुत कमा लेवेंगे | माणिकचंदजी ने कहा कि भाई पानाचंद, 1 यह तो तुम्हारा कहना ठीक है पर हरएक काम में पूर्वापर विचारकी जरूरत है | बाजारकी स्थितिको पलटते देर नहीं लगती है । इससे हम लोग कितना रुपया इस विवाह के निमित्त निकालें इसका पक्का आंकड़ा बांधदेना चाहिये, पिताजी उसीमें सब काम निबटावेंगे । पानाचंदजी ने पिता से पूछा कि कितनी रकम आप खरचना चाहते हैं ? सेठ हीराचंदजीने कहा कि विवाह में जितना खर्च किया जाय उतना हो सक्ता है । १ हजारसे १० हजारतक खर्च हो सक्ता है, पर मेरी समझ में २०००) दो हजार रुपयेका अनुमान बांधा जाय तो वश होगा । सर्व भाइयोंके ध्यानमें यह बात जंच गई और तय होगया कि दो हजार रुपये खर्च किये जावें । विवाहका समय निकट आते ही बम्बई में तय्यारियां होने लगीं और नियत मितीपर वारात ईडर पहुंची। सूरत और बम्बई - से बहुत से भाई शामिल हुए। ईडर में गाजेबाजे आदिसे बहुत ही धूमधाम छा गई । बम्बई से बारात आई है इस खबर से बहुत से नरनारी उसके देखने को उत्कृष्ट हो घरसे निकल आए । २५ वर्षके युवान वरको घोड़े पर सवार देखकर बुद्धिमान लोग बहुतही गुण गाते थे कि वास्तव में विवाह तो इसी उमरमें ही करना चाहिये । बारात गांधी मोतीचंदके द्वारपर पहुंची। उसके उपर एक खिड़की में रूपवती वस्त्राभूषणोंसे सज्जित अतिशय यौवनमें परिपूर्ण बैठी थी । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy