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अध्याय पाँचवाँ ।
निगाह में आता है और खरीदा जाता है उसमें लाभ ही होता है। आप दिल खोलकर खर्च कीजिये | अपने भाग्यके अनुसार हम और बहुत कमा लेवेंगे | माणिकचंदजी ने कहा कि भाई पानाचंद, 1 यह तो तुम्हारा कहना ठीक है पर हरएक काम में पूर्वापर विचारकी जरूरत है | बाजारकी स्थितिको पलटते देर नहीं लगती है । इससे हम लोग कितना रुपया इस विवाह के निमित्त निकालें इसका पक्का आंकड़ा बांधदेना चाहिये, पिताजी उसीमें सब काम निबटावेंगे । पानाचंदजी ने पिता से पूछा कि कितनी रकम आप खरचना चाहते हैं ? सेठ हीराचंदजीने कहा कि विवाह में जितना खर्च किया जाय उतना हो सक्ता है । १ हजारसे १० हजारतक खर्च हो सक्ता है, पर मेरी समझ में २०००) दो हजार रुपयेका अनुमान बांधा जाय तो वश होगा । सर्व भाइयोंके ध्यानमें यह बात जंच गई और तय होगया कि दो हजार रुपये खर्च किये जावें ।
विवाहका समय निकट आते ही बम्बई में तय्यारियां होने लगीं और नियत मितीपर वारात ईडर पहुंची। सूरत और बम्बई - से बहुत से भाई शामिल हुए। ईडर में गाजेबाजे आदिसे बहुत ही धूमधाम छा गई । बम्बई से बारात आई है इस खबर से बहुत से नरनारी उसके देखने को उत्कृष्ट हो घरसे निकल आए । २५ वर्षके युवान वरको घोड़े पर सवार देखकर बुद्धिमान लोग बहुतही गुण गाते थे कि वास्तव में विवाह तो इसी उमरमें ही करना चाहिये । बारात गांधी मोतीचंदके द्वारपर पहुंची। उसके उपर एक खिड़की में रूपवती वस्त्राभूषणोंसे सज्जित अतिशय यौवनमें परिपूर्ण बैठी थी ।
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