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महती जातिसेवा प्रथम भाग | [ ४८१ पधारे हैं । पहाड़पुर ४८ दि० जिनमंदिरजी हैं जिनमें प्रतिबिम्ब व चरणपादुकाएं हैं। इनमें कई बहुत प्राचीन हैं। यह पर्वत बड़ा रमणीक है । यहां पहाड़से पानीका झरना बड़ी दूरसे सदा गिरता है जिससे अपूर्व शोभा रहती है । तलहटीमें ९ मंदिर व धर्मशाला है । मुनीम बापूजी लक्ष्मण आगरकर मिले । इन्होंने बहुत अच्छी तरह ठहराया । इस तीर्थकी यात्रा से सवको परमानन्द हुआ । बेतूलके एकष्ट्रा अ० कमिश्नर रायबहादुर बाबू हीरालाल बी०ए०के पास इस तीर्थ सम्बन्धी एक ताम्रपट है उससे राजा श्रेणिक ( बिम्बसार ) व उसके पिता उपश्रेणिकका इस पर्वत से सम्बन्ध मालूम पड़ता है । यह श्रेणिक २ || हजार वर्ष हुए श्रीमहावीर स्वामीके उपदेशका मुख्य श्रोता था । यहां पर निकट ही जो एलिचपुर नगर है वह एल नामके जैनी राजाके नामसे प्रसिद्ध हुआ है जो संवत् १९१५ में हुआ था (देखो इम्पीरियल गैज़ेटियर आफ इंडिया वाल्यूम १२ ) इस पर्वत पर केशरकी वृष्टि कभी २ होती है यह बात सर्व प्रसिद्ध है । यूरुपियन लोग इस तीर्थ के दर्शनको आते हैं। उनका यह श्रद्धान है कि जो एक बार भी इस पर्वतका दर्शन कर जाता है उसकी तरक्की होती है और धन भी प्राप्त होता है । ता० २४ नवम्बर १९०९ को यहां डिप्टी कमिश्नर दोवारा आए थे तब आपने रिमार्क लिखा है
"I was much struck with the cleanliness of the plain and arrangement made for visitors" अर्थात् मैं इस क्षेत्रकी निर्मलतासे और यात्रियोंके लिये योग्य प्रबन्धसे बहुत प्रसन्न हुआ ।
यहां पर ता० २७ – १२ - १९०९ को एच० कैम्पल, मिस
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