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________________ महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४८९ स्थिरताके लिये तय हुआ कि व्याख्यानोंकी छोटी २ पच्चीस पुस्तके प्रकाशित हों । पं० मेवारामजीका व्याख्यान बहुत प्रभावशाली हुआ था । लाला रूपचंदजीने १०००) महासभाके महाविद्यालयमें जो सहारनपुरके चंदेमें लिखा था सो प्रदान कर दिया । सेठ माणिकचंदजीने कलकत्तेके कई धनाढयोंसे स्याद्वाद पाठशालाके लिये हज़ार २ की रकम भरानेका उद्योग किया, पर सफलता केवल एक बाबू धन्नलाल अटार्नी पर हुई। आपने एकी दफे कहनेसे स्वीकार कर लिया तथा लाला रूपचंदनीने भी १०००) लिखाए । श्रीमती मगनबाईजीने मंदिरजीमें कई स्त्रीसभाएं करके शिक्षा व धर्मकी जागृतिपर उत्तेजित किया । इसी अवसरपर सेठजीने शिखरजीकी उपरैली कोठीकी प्रबन्धकारिणी सभाका अधिवेशन भी कलकत्तेमें नियत किया था और सर्व मेम्बरोंको खबर की थी। उसीके अनुसार ता: ३० दिसम्बर १९०६ को बैठक हुई, जिसमें बाबू देवकुमारजी, सेठनी, पं० नंदकिशोरजी, छेदीलालजी, शीतलप्रसादजी, सेठ नेमीसाह नागपुर व चुन्नीलालके द्वारा क्रमसे नियुक्त थे। ५॥ मासका हिसाव व रिपोर्ट पास की गई। बड़े मंदिरजीके जीर्णोद्धारके लिये बम्बईसे मिस्त्री भेजकर रिपोर्ट लेना तय हुआ। आगामी वर्षके लिये बजट पास किया गया। मालूम हुआ कि कोठीके चार्ज लेनेसे अब तक बहुत कुछ प्रबन्ध सुधरा है। कलकत्तेसे चलकर सेठजी सीधे बनारस आए और मैदागिनी धर्मशालामें ठहरे। यहां आप ३, ४ दिन काशीमें सेठजीका ठहरे और उदारचित्त धनाढ्य जैनी भाइयोंको आगमन । समझाकर, स्वयं उनके घर तकमें जाकर पाठशालाके चिरस्थाई फंडमें हनार हमारके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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