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महती जातिसेवा द्वितीय भाग । प्रभावसे सेठजीने अपने व्यापारमें उन्नति की उसका हमेशा निवाहनेका उद्योग किया। लखनउ निवासी पार्वतीबाईजीको जबसे श्रीमती मगनबाईजी
. का समागम हुआ तबसे आपको भी स्त्री समा-- श्रीमती मगनबाईके जकी सेवा करने का बहुत बड़ा. ध्यान हो उद्योगका फल। गया था। जबतक आपके पिता लाला दर
बारीलालजी वृद्धावस्थामें सजीवित रहे तबतक बाईजीने उनकी भले प्रकार सेवा की थी। पिताके देहान्त. होने पर बाईजीने धीरे २ घरका सम्बन्ध छोड़कर एक बाईके साथ मुख्य २ स्थानों में अपने ही खर्चसे भ्रमण करना प्रारंभ किया और उपदेश देकर स्त्रियोंको सुधारा, स्वयं भी शिक्षा दी व कन्याशालाओंके लिये उद्योग किया । लाला जग्गीमलजी देहली ताः ८ मार्च ०८ के जैनगनटमें प्रगट करते हैं कि बाईनीने बागमत, रोहतक तथा मेरठमें दो दफे जाकर स्त्री समाजका बहुत बड़ा उपकार किया है तथा दिहलीमें आपने कई सभाएं की जिसमें एक ताः २१ फर्वरीको बड़े समारोहके साथ की, २०० स्त्रियां हानिर थीं। इसमें आपने कन्याओंका विवाह जैन पद्धतिके अनुसार करानेपर बहुत जोर दिया। कई स्त्रियोंने इस बातको मानकर प्रतिज्ञा की । मेरठ में आपने कन्याशाला भी स्थापित करा दी है।
इसी तरह जबलपुरमें श्रीमती मगनबाईकी संगतिसे श्रीमती जमनाबाईको भी उपदेशका अभ्यास हुआ। ताः २३ फर्वरी १९०८ को छपाराकी बिम्बप्रतिष्ठाके अवसरपर बाईजीने एक स्त्री सभा की जिसमें १००० स्त्रियां मौजूद थीं। चारों गतिके दुःखोंपर व्याख्यान
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