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५५८ ] अध्याय ग्यारहवां । दिया । पिंडरईकी कन्याओंकी परीक्षा ले इनाम बंटवाया फिर कन्याशालाके लिये चन्दा करके शाला भी खुलवा दी व जैनी अध्यापिका भी नियत करा दी। मिती फाल्गुण सुदी १० गुरुवारको शोलापुरमें " सेठ
नाथारंगनी दिगम्बर जैन बोर्डिग स्कूल " के शोलापुरमें बोर्डिंगका स्थापनका मुहूर्त था। बम्बईसे सेठ माणिमुहूर्त। कचंदजी पं० धन्नालालजी और शीत
लप्रसादजीको लेकर १ दिन पहले पहुंच गए थे। शामकी सभामें शीतलप्रसादनीने "प्रभावना अंग" पर व्याख्यान देकर शिखरजीके रक्षार्थ उद्योग करनेपर जोर दिया, इसका समर्थन पं० धन्नालालजीने किया। और फीरोजाबादमें शिखरजीके निमित्त होनेवाली सभाके लिये प्रतिनिधि चुने गए। सभापति सेठ सखाराम नेमिचंद हुए थे ।
दूसरे दिन ७॥ बजे सबेरे रावबहादुर केल्कर डिप्टी कलेक्टर के सभापतित्त्वमें सभा हुई। पहले ही कुंभ स्थापन कर सरस्वतीपूजन की गई । फिर सेठ हीराचंद नेमचंदने सेठ माणिकचंदजीको बोर्टिगोंका बीनभूत कहकर नियमावली आदि सुनाई। तब सभापतिने बोर्डिगका द्वार खोला । पं० पासू गोपाल शास्त्रीने छात्रोंको रत्नकरंडश्रावकाचारका पाठ दिया । शीतलप्रसादनीने विद्याके महत्वपर उपदेश दिया। फिर सभापतिने अपने विद्वता पूर्ण भाषणमें कहा कि " हिन्दू लोग जैन धर्मके कारणसे ही मांससे बचे हुए हैं। आजकल भारतमें भारी दान देनेकी उत्तम रीति पहले पारसियोंने चलाई, फिर उन्हींका अनुकरण जैनियोंने
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