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________________ ८५८ ] अध्याय तेरहवां । पाड्यां छे, ते सर्वने जाहेरन छे. आनथी वीस वर्षपर गुजरातमां अंग्रेजी भणनार विद्यार्थीओने केटलं खर्च करवू पडतुं, तेम अमदावाद तथा मुंबाई शहे मां के ज्यां खावानुं मळे पण रहेवार्नु न मळे तेवे स्थाने रहेवामां के टली अगवडो वेठवी पडती तेनो अनुभव जेने ते अत्यारे शेठ साहबनो अन्तःकरणपूर्वक आभार माने छे. पैसा कमावा तो सौ कोई जाणे छे, पण तेने साइरस्ते लगावी जाणनार थोडान छे. पोतानी नामनाने खातर पैसा खर्चनारनी जैन समाजमां खोट नथी, पण जमानाने अनुरी कये रस्ते पैमा खर्चानी जरूर छे ते समजनार तो शेठ माणे चंदनान प्रथम हता. कोई पोताना कुटुम्बनाज श्रेयने खातर, तो कोई पोतानी ज्ञातिना हित खातर, तो कोई पोताना गामनी भलाइन वास्ते, तो कोई खास पोनाना प्रांतमा रहेनारा भाईओना भलाने खा.र नाणां खर्चे छे, पण सदरहू शेठ साहेबे ज्ञाति के कुळनः भेर राख्या सिवाय जैन समाजने वसुधैव कुटुंबकम् गणीने गराच विद्यर्थीओने जे म्हाय करी छे ते बदल जैनसमान शेठ माहेनो जेटलो आभार माने तेटलो आछो छे; आवा एक परोपकारी नरना मरणन लीधे शु गुजरात, शुं पंजाब, शुं दक्षिण अने शुं हिंदुस्थान सारा भारतवर्षना जैन समाजे एके अवाजे दिलगिरी जाहेर करी छे. शेठ माणेकचन्दनीने महात्मानी उपमा आपवामां जरा पण अतिशयोक्ति नथी; कोईपग दृष्टिथी तपासतां मालुम पडशे के एक मित्र तरीके, समाज तथा तीर्थना उद्धारक तरीके, गुरु तरीके,. निराभिमानी पुरुष तरीके, पैसानो सद्व्यय करनार तरीके तथा सलाहकारक तरीकेना हरेक गुण तेओनामां हता; आटला गुणो एकी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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