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________________ ६२८ 1 अध्याय बारहवां बहुत दिनोंसे सेठनी इस चिन्तामें थे और आगरा कालेज़ोंमें सेठजीका पंजाबमें छात्र बहुतायतसे पढ़ते | गमन । रहे । लाला लाजपतरायके समीप ___ जन्म लेकर भी जैनधर्मको न! न हो। इसीलिये इन तीनों स्थानोंमें आपका उद्योग जार आगरा और प्रयाग तो एक दफे आप दौरा भी कर आए थे, पर लाहौर नहीं गए थे। लाहौर में बाबू रामलाल सब-डिवीजनल अफसरसे बहुत दिनोंसे पत्रव्यवहार चल रहा था। सन् १९०९ दिसम्बरमें लाहौरमें राष्ट्रीय कांग्रेस होना निश्चित हुआ तथा इसी समय जैन यामेन्स एसोसियेशनका वार्षिकोत्सव भी निश्चित हुआ। तब बाबू रामलालने सेठनीको लिखा कि यदि ऐसे समयपर आप यहां पधारे तो शायद बोडिंगका कुछ प्रबन्ध हो सके । सेठजीने शीतलप्रसादजीको यह बात बयान की । शीतलप्रसादनीने सेठनीको पुष्ट किया कि आप अवश्य चलें । आपके पधारनेसे अवश्य कार्य की सफलता होगी। शोलापुरसे लौटनेको एक सप्ताह ही बीता था कि शीतलप्रसादनीको लेकर सेठजी लाहौरको रवाना हुए। साथमें प्रोफेसर ए० बी० लटे एम० ए० को भी लिया। ता० २३ दिसम्बरको मेलसे चलकर ताः २४ को ललितपुर आए। -शीतलप्रसादजीके निमित्तसे एकदम नहीं जा सकते थे। पहले तार कर दिया था सो सेठ मथुरादास टडैयाने भले प्रकार स्वागत किया। शहरसे बाहर क्षेत्रपाल स्थानपर ठहरे । यहांका जिनः मंदिर बहुत रमणीक है । थोड़े दिन हुए महोबेमें कुछ प्राचीन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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