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महती जाति सेवा तृतिय भाग ।
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प्रतिमाएं मिली थीं जो सर्कारके कब्जे में थीं । राजाराम बांदाकी प्रेरणा से तीर्थक्षेत्र कमेटी और भारतवर्षीय दि० जैन महासभाने लिखा पढ़ी करके छोटे लाट युक्तप्रान्तकी आज्ञासे उन प्रतिमाओंको प्राप्त किया । उनमेंसे श्रीअभिनन्दननाथकी करीब १२०० के सम्वत् की बहुतही ध्यानाकार २ || हाथ ऊंत्री पद्मासन प्रतिमाको सेठ मथुरादासजीने लाकर यहां विराजमान की । शेष बांदा में रहीं। रात्रिको पाठशालाकी परीक्षा ली। यहां इस समय स्याद्वाद पाठशाला काशीसे विशारद परीक्षोत्तीर्ण पं० व्रजलाल हो मास से अध्यापक थे। सेउ माणिकचंदनी ने सेठ मथुरादासजीको बहुत उपदेश किया कि आप यहां एक छात्रालय खोलें, उसमें बुदेलखंडीय छात्रोंको रखकर संस्कृतादि पढ़वावें । शहरके लड़के विशेष नहीं पढ़ते । उनका विद्वान् बनना कठिन है । शास्त्रसभा में कुछ भाइयोंने स्वाध्यायका नियम लिया ।
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यहांसे ताः २५ को चलकर सीधे ताः २६ को लाहौर आए । भावड़ा गली के दिगम्बर जैन मंदिरके निकट एक मकान में लाहौरवालोंने बड़े सम्मान के साथ ले जाकर सेठजीको ठहराया। ता: २६ और २७ को एसोसियेशन के अधिवेशन हुए । इनमें एक दिन शीतलप्रसादजीने श्रावक धर्म, प्रोफेसर लट्ठेने जैनधर्मका महत्व और पं० अर्जुनलाल सेठी बी० ए०ने कर्म सिद्धान्तपर व्याख्यान दिये । सेठजीने बहुन से इंग्रेजी पढ़े जैनियों को स्वाध्यायका उपदेश देकर छः ढाला दौलतरामकृत याद करनेको कहा तथा जिसने स्वीकार किया उनको इसकी प्रतिये व जैन
लाहौर दि० जैन बोर्डिंगका प्रबन्ध
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