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________________ लक्ष्मीका उपयोग | [ २१९ कि जिससे दो बहुत अच्छे ज्ञानी गुणवान मनुष्य परीक्षा करके रक्खे जांय और उनको सर्व मुल्क में भेजा जावे और ग्रामोंमें उपदेश करें और जातिकी बातों में सुधार करें और इस फंडमें यदि और लोग पैसा दें तो फंडको बढ़ाकर उसमेंसे सर्व देशावरोंमें उपदेश करनेके लिये मनुष्य रक्खे जाय और उनके का की मासिक रिपोर्ट मंगाई जावे । वहाँ जो २ बिगाड़ हो उसे सुधराया जावे तथा धर्ममें मिथ्यात्वका भाग बहुत घुस गया है उसको दूर करना चाहिये । ज्ञातियोंमें तड़ पड़ गए हैं उनको मिलाना चाहिये । कन्या विक्रयका रिवाज दूर करना चाहिये और बाललग्न नहीं होने देना चाहिये । तथा गुजरातमें रोने पीटने के रिवाज में सुधारा करना चाहिये। बड़े २ ग्रामोंमें जैन पाठशालाएं स्थापित करानी चाहिये । इन कामोंके लिये एक सभा कायम करें | उसका फंड चालू करें इन कामोंका आरंभ आपने जो करना शुरू किया है इससे हमें बहुत ही खुशी है तथा हमारे योग्य कोई सेवा आप बतावेंगे तो हम यथाशक्ति मिहनत करेंगे " अपने अंतःकरणसे जाति व धर्मकी सेवामें अपनी शक्तिको योग देनेकी स्वीकारता बतानेवाली यह चिट्ठी थी इसीलिये सम्पादक जैन बोधकने अपने अंक २ अश्विन शाका १८०७ व अक्टोवर १८८५ सफा १७-१८ में प्रगट कर दी थी । सेठ माणिकचंदजीके पत्रको पाकर हीराचंदजी जाति सुधारके लिये और भी उत्साहसे काम करने लगे । सेठ हीराचंदका जा तथा विद्वान उपदेशक नहीं मिल सक्ते इसी अभी काम में हुए परन्तु www.jainelibrary.org त्युन्नतिका प्रयत्न | लिये उक्त सेठजीके उपायको लेनेके पहले दिलमें ही रखते For Personal & Private Use Only 1 Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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