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अध्याय सातवाँ ।
संस्कृत व धार्मिक विद्याकी उन्नतिकी योजना करने लगे। स्वाध्यायके प्रचारार्थ ग्रन्थ भी मुद्रण कराने लगे। शोलापुरमें संस्कृत पाठशाला तो आपने शाके
१८०५ पौष मासमें ही चालू कर दी थी, सोलापुरमें संस्कृत उसमें एक मारवाड़ी गृहस्थ शिक्षक नियत पाठशाला। किये गए । इन्होंने १० मासमें कुछ छात्रोंको
सारस्वत व्याकरण, अमरकोष, रूपावली, समासचक्र सिखाया । उनके स्वदेश जाने पर शिक्षक न मिलनेसे ४ मास शाला बंद रही थी फिर अक्कलकोटके रा०रा० भीमाचार्यको नियत करके गु० फागुन वदी १० शाके १८०६ से फिर शाला चालू कराई तब १० छात्र भरती हुए ! श्रावण सुदी ६ शा. १८०७ में १९ हो गए इन्हींमें पासू गोपाल शास्त्री भी थे जो उस समय अमरकोश १ कांड, रघुवंश २ सर्ग व एकीभावस्तोत्र पूर्ण कर चुके थेतथा हरीभाई देवकरणवाले सेठ वालचंद रामचंद अमरकोश १ कांड आधा पढ़ चुके थे। इस पाठशालाकी उक्त सेटने इतनी उन्नति की कि शाके १८०८ श्रावण वदी ११ को इसका दूसरा वार्षिक उत्सव किया । उस समय २३ छात्रकी परीक्षा लेक इनाम दिया गया था उस समय पास गोपाल रघुवंश ३ सर्ग, किरा तार्जुनीय १ सर्ग, स्वयंभू श्लोक १५, संस्कृत प्रथम पुस्तक पाठ ५ पढ़ चुके थे। इस वक्त पाठशालाके लिये ६०००) के अनुमान ध्रौव्य फंड भी जमा कर लिया जिसमें सबसे अधिक रकम अपने कुटुम्बसे प्रदान की । इसका वर्णन जैन बोधक सप्टेम्बर सन १८८६में मुद्रित है।
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