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महती जातिसेवा तृतीय भाग। [६४५ माणिकचन्दनीके जीवनका यदि अनुकरण करके बोर्डिंग बना दें तथा खर्च जो कि कठिनतासे चलता है उसके लिये कुछ ध्रौव्य फंड दे दें निसके व्यानसे काम चले तो पंजाबमें जैनधर्म का झंडा गाड़नेके समान महान पुण्य बंच हो । मंत्री लाला रामलालजी व उपमंत्री बाबू शामचंदजी बी० ए० व सभापति लाला जियालाल खनांची इस संस्थाकी उन्नतिमें दिनरात दत्तचित्त रहते हैं। लाहौरमें १०० जनी छात्र कालिजोंके पढ़नेवाले हैं। स्थान विना चाहे जहां रहकर धार्मिक ज्ञान व आचरणसे भ्रष्ट हो रहे हैं। यहां पर पहले छात्रोंके खयाल आर्य समाजी थे पर अत्र सब जैन धर्मके गौरवको समझ गए हैं और अपने अनेकांन्त मई तत्वके सामने एकांत तत्वोंको तनने योग्य ही जान रहे हैं। इसका प्रमाण यह है कि इस छात्राश्रमसे लाभ लेकर आजीविका पर लगे हुए परमानंद एम० ए० सियालकोटसे अपने ता० २१ सितम्बर १५ के पत्र में लाला रामलाल मंत्री बोर्डिगको लिखते हैं कि मैंने यहां तीन वर्ष रहकर उन अमूल्य जैन धर्मके रत्नोंको जाना है जिनको मैं बिलकुल भूल रहा था। अब मुझे घमंड है कि मैं जैन धर्ममें पैदा हुआ । मैं छात्राश्रमके उपकारको कभी भी भूल नहीं सक्ता । आपके इंग्रेजीके कुछ वाक्य ये हैं:
Ram Kaur Lane SIALKOTE CITY.
21-9-15. my dear........
I have lived for full three years at the Lahore Jain Boarding House. Unless I am to
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