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अध्याय बारहवां । थीं कि जहां पधारें वहां अवश्य सुधार होता है। यहांसे ता० २५ को चल २६ फर्वरीको बम्बई आए। जिस बातको चाहते हो यदि वह हो जावे तो चित्तकी आ
कुलता मिटती है। और आकुलताके मिटनेसे लाहौर बोर्डिङ्गकी ही सुखका अनुभव होता है। कई वर्षों से स्थापना और सेठजी पंजाबमें बोर्डिग हाउस स्थापित कसेठजीको हर्ष। राना चाहते थे सो ता० ३० जनवरी १९१०
के दिन लाहौरके दिगम्बर जैन पंचानने अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार बोर्डिंग खोल दिया । उस दिन १० छात्र भरती हुए । सेठजीके पास जब पत्रद्वारा खबर आई, आप बड़े ही आनन्दित हुए। यह बोर्डिंग अभी तक उन्नतिरूपमें चल रहा है। १ वर्षमें ही २३ छात्र हो गए थे अर्थात् ला कालेन (कानून) के ५, बी० ए० के ३, एफ० ए०के ७, इजीनियरिंग ४, मैट्रकुलेशन २ और मिडिलके दो।
धर्मशिक्षा छःढाला दौलतरामकृत पढ़ाया गया व लिखित उत्तरोंसे परीक्षा ली गई । फल अच्छा रहा । पारितोषिक भी दिया गया । आगे वर्षों में द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थसुत्र तककी पढ़ाई होती रही है। बोर्डिंग जब खुला तब ही लाला देवीसहाय फीरोज़पुर छावनी और लाला लक्ष्मीचंद इच्छाराम कम्पनीवालोंने देखा और उन्होंने बहुत प्रसन्न होकर २५१) और २००) की क्रमसे सहायता दी। __ वर्तमानमें करीब ४० के छात्र हैं। मकान अभी किरायेका ही है पर जमीन बहुत मौकेसे मिल गई है। कोई धर्मात्मा सेठ
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