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________________ युवावस्था और गृहस्थाश्रम । [१३३ नफा उठाते हैं। मित्र मोतीचंदके इन शब्दोंको सुनकर चित्तमें कहने लगे कि वास्तवमें यह बहुत ही लायक मनुष्य है जो अपने छोटे भाइयोंके गुणानुवाद परोक्षमें कर रहा है और अपने आपको उनके सामने हीन जता रहा है, यही आर्य्ययन है, यही सज्जनता है, यही गुणग्राहकता है, यही एकताका कारण है । यदि परस्पर एक दूसरेके गुणोंको ग्रहण किया जाय और प्रत्यक्ष या परोक्ष एकसे ही भावोंसे गुणोंका कीर्तन किया जाय और दोष व छिद्र देखने में कम दृष्टि दी जावे तो एकतादेवी उनसे कभी नहीं रूठती है, जहाँ एक दूसरेके अवगुणको ग्रहणकर टीका की जाती है वहाँसे एकता रूठ जाती है और फूट चंडालिनीका बास हो जाता है यही गुणग्राहकताका गुण इनके पिता सेठ हीराचंदमें है। हर्षकी बात है कि इन भाइयोंमें वही गुण है तब ही ये चारों भाई एक साथ मिलकर व्यापार करते और रहते हैं- किसी प्रकारकी भिन्नता देखनेमें नहीं आती है । इस तरह अनेक बातें करते २ दोनों मित्र हवा खाकर लौट आए। सेठ मोतीचंद उस रात्रिको घरमें बैठे थे पर मित्रका वह प्रश्न इनके दिमागसे नहीं जाता था इससे कुछ चित्तपर उदासी सी छा रही थी। सेठ हीराचंदजी नित्य रात्रिको अपने चारों पुत्रोंसे दिनभरकी बातें पूछा करते थे तब परस्पर मित्रवत गोष्ठी करते हुए पांचों जने अपना थोड़ा समय विताते थे। यह मित्रगोष्ठी भी एकताके स्थापनका एक मुख्य कारण है । इसके निमित्तसे किसी तरहका अविश्वास व गैरसमझपना नहीं होने पाता है। उस रात्रिको सेठ हीराचंदने मोतीचंदको कुछ उदास देखा । सर्व भाइयोंके सामने तो सेठजीने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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