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अध्याय पाँचवाँ ।
इसका कारण पूछना उचित नहीं समझा क्योंकि यह न्याय ही है कि जो अंत:करणका रहस्य है वह एकान्तमें ही कहा जाता हैं । जब मोतीचंद शयनालयको गए तब सेठ हीराचंद कुछ रात्रि बीतने पर उनको जगा उनकी उदासीका कारण मालूम करने लगे। मोतीचंदको मित्रके प्रश्नकी बात कहते हुए बहुत लज्जा आती थी पर पितासे किसी बातको छिपाना भी वे उचित नहीं समझते थे । उन्होंने थोड़ी देर बाद संध्याकालकी वार्ताको कह दिया ।
सेट हीराचंद अपने मनमें बिचारने लगे कि अब मुझे देर नहीं करना चाहिये और अपने पुत्रोंकी शीघ्र लग्न मोतीचंदका विवाह | करना चाहिये । मोतीचंदको कहने लगे कि तुमने उसे बहुत योग्य उत्तर दिया । हमने तुमारे लिये योग्य सम्बन्ध ठीक कर लिया है । मोतीचंदने सिर नीचा कर लिया ।
पाठकोंको पहले कहा जा चुका है कि हूमड़ोंका कि हमड़ों का विस्तार ईडरकी ओर भी था । गुजरात देशमें ईडर एक देशीराज्य है । वहाँपर अब भी वीसाहूमड़ और दशाहूमड़ जैनियोंकी अच्छी वस्ती है, भट्टारककी गद्दी है, और एक प्राचीन दि० जैन शास्त्रभंडार भी है । वहीं गांधी मोतीचंद फूलचंद वीसाहूमड़ एक धर्मात्मा दिगम्बर जैनी रहते थे । संवत् १९९२ में उनको एक कन्याका लाभ हुआ जिसका नाम रूपवती था । यह कन्या स्वरूपमें सुन्दर थी, इसके पिता भी बहुत बुद्धिमान और धार्मिक नियमोंसे परिचित थे ।
इन्होंने रूपवतीको बड़े प्रेमसे पाला था, इसे शुरू से ही श्रीजिनमंदिरजीमें ले जाया करते थे । इस कन्यामें ऐसी आदत पड़
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