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________________ [ १३५ युवावस्था और गृहस्थाश्रम | गई थी कि यह श्री जिनेन्द्रके दर्शन में बड़े भाव लगाती व खूब स्तुति पढ़कर नमस्कार करती थी। मंदिर में हरएक नरनारी इसे देखकर प्रसन्न होते थे । यह कन्या मातापिताकी अति आज्ञाकारिणी थी । उस समय ईडरमें भी कन्याओं की शिक्षाका न तो कुछ प्रबन्ध था और न मातापिताओंको यह भाव ही पैदा होता था कि हम कन्याओंको पढ़ावें । विना पुस्तकके ज्ञानके भी रूपवतीकी माताने इसे घरका सर्व कामकाज बहुत ही सुघड़ रीति से करना बता दिया था । रसोईकी विधि व शुद्धता, पानी छाननेकी विधि, अन्न वीनना, घरकी सफाई, वस्त्र सीना आदि सर्व कामों को यह बहुत चतुराई से करती थी । कभी २ पिता इसको अपने साथ धर्मोपदेश सुनाने को ले जाते थे यह बहुत रुचिसे सुनती और जो सुनती उसे धारण कर लेती थी, इसका चित्त धर्मकथा व धर्मसेवनमें खूब ही लवलीन रहता था । विवेक और दया भी इसके चित्तमें थे जिससे हरएक काममें जीवरक्षाका बहुत विचार रखती थी । यह कन्या मातापिता व कुटुम्बियोंकी अति ही प्यारी थी । माताके आग्रह होनेपर भी गांधी मोतीचंदने रूपवतीकी लग्न अल्प वयमें करना ठीक नहीं समझा । गांधी मोतीचंद यही चाहते थे कि किसी बहुत योग्य सम्बन्धके साथ इसका पाणिग्रहण किया जाय। गुजरातके दूमड़ों में उन दिनों सेठ हीराचंद और उनके पुत्रोंकी कीर्तिकी सुगंध फैल गई थी और हरएक उनके उद्योगकी सराहना करता था । ईडर में भी यही चर्चा होती थी। गांधी मोतीचंदका मन भी यही चाहने लगा कि इस कन्याका सम्बन्ध बम्बईके जौहरी सेठके साथ करें, जिसमें इसका जीवन बहुत सुखसे बीते और यह दान व धर्म For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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