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अध्याय पाँचवाँ ।
खूब ही कर सके क्योंकि इसका चित्त अति ही आई और कोमल है । एक दफे गांधी मोतीचंद उस कन्या के साथ बम्बई पधारे और वहाँ मौका पाकर सेठ हीराचंद से मिले और निवेदन किया कि हमारी कन्या रूपवतीको हम आपके श्रेष्ठ पुत्रको देना चाहते हैं ।
हीराचंद ने उसका जन्मपत्र माँगा तथा वह भी इच्छा प्रगट कि कि यदि आप रूपवतीको यहां लाए हों तो मैं उसे किसी मौके पर देख भी लूँ | गांधी मोतीचंद इस बात से बहुत ही प्रसन्न हुए और कहा कि कल श्री जिनमंदिरजीमें जब वह दर्शन करने जायगी तब आप उसको देख सक्ते हैं । सेठ हीराचंद मंदिरजीमें घंटा आध घंटा रोज सवेरे बैठते थे । दूसरे दिन गांधी मोतीचंद के साथ रूपवती बहुत ही विनयके साथ द्रव्यको लिये दर्शन करनेके लिये श्री जिन मंदिरजी में गई, उस समय सेट हीराचंद शास्त्र स्वाध्याय कर रहे थे । गांधीजी के साथ एक कन्याको दर्शन करते हुए देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए, उसकी चाल, ढाल, विनय भक्ति, स्तुति पठन, सौम्य और सुन्दर रूप सेठ हीराचंद के मनमें नक्श हो गए और उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि इस कन्यासे ही मेरा पुत्र सुशोभित हो, यही सच्ची गृहिणी होगी। दूसरे समय पर गांधी मोतीचंद जब फिर सेठ हीराचंदजी से मिले तब परस्पर वार्तालाप में एक दूसरेकी पसन्दगी हो गई, केवल जन्म पत्रिकाओंका विचार ही करना शेष रहा । थोड़े दिन के बाद यह विचार भी हो लिया ।
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जिस दिन सेठ मोतीचंद और एक मित्रसे बम्बई के समुद्रतट पर वार्तालाप हुआ था उसीके तीन मासबाद संवत् १९२८ में जब मोतीचंद २५ वर्षके थे सेठ हीराचंद इनके विवाहकी तय्यारियां
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