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________________ दानवरिका स्वर्गवास। . [ ७६९ स्थानकवासी कौमको भी बड़ा भारी आघात पहुंचा है। उनके हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिगसे हरएक जैन लाभ ले सकता है। - फिर जीवदया ज्ञान प्रसारक फंडके मंत्री (श्वे०) मि० लल्लूभाई गुलाबचंदने कहा-"स्वर्गीय सेठ साहबका जीवदयासे बहुत प्रेम था। इस कार्यमें अच्छी सलाह और मदद दिया करते थे........जो हनारों मांसाहारी वनस्पत्याहारी बने हैं, उनके पुण्यमें उनका भी हिस्सा है।" श्वे० संघपति सेठ रतनचंद तलकचंदने कहा-" धनाढ्य लोग बहुत द्रव्य दान करते हैं परन्तु दानके अंतिमसे अंतिम ढंगकी शुरूआत सेठ माणिकचंदजी ही ने की थी। उनका दान शिक्षाके लिये ही होता था"। मि० उदानी एम०ए० ने कहा-" सेठ साहक्की इच्छाएँ बहुत ऊंची थीं। उनका विचार बम्बईमें मांसाहारियोंके सुभीतेके वास्ते एक वेजीटेरियन रसोड़ा और लंडनमें बोर्डिग स्थापन करनेका था । वे तो गए परन्तु उनकी कमी प्रत्येक जैनको मालुम हुए विना न रहेगी।" फिर पं० नाथूराम प्रेमीने कहा-"सेठजी साहबने १५ वर्षके भीतर जैन समाजमें एक नया युग खड़ा कर दिया है। वे नित्य शामको भोनन करनेके बाद अपने दीवानखानेमें बैठते थे और उस वक्त उनसे मिलने या सलाह लेने जो कोई भी छोटेसे बड़ा, गरीबसे अमीर तक आता था उसे सन्मान पूर्वक बिठाते, उसका हाल सुनते और उसको योग्य सलाह देते थे। परदेशी जैनियोंसे आप बड़े प्रेमसे बिठाकर उनके देशका, उनके गांवका हाल पूंछते थे कि आरके गांवमें कितने घर जैनियोंके हैं ? पाठशाला स्कूल है या 8s International Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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