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________________ vrwww ५५४ ] अध्याय ग्यारहवाँ। श्री शिखरजीना पवित्र पहाड उपर ज्यां वीस तीर्थकर अने असंख्यात मुनि मोक्ष पाम्या छे त्यां यात्रालुओना सुख माटे पगथीओ करवामां आवतां हतां ते आपणा श्वेतांबरी भाईओए वगर कारणे उखेडी नांख्यां; ते काममां तथा वीसपंथी बडी कोठीनो वहीवट सुधारवाना कार्यमां आपे आगेवान थई महेनत लईने बधी को मां जय मेळव्यो, जेथी आपनामां स्वधर्म वात्सल्य गुण तारीफ करवा लायक छे एम स्पष्ट देखाय छे. श्री जयधवल जेवां प्राचीन ग्रंथोना जीर्णोद्धार करवामां आपे आगेवानी भाग लई सर्व भाईओनी मददथी काम चलाव्यु छे जेथी आपनी धर्मशास्त्रज्ञान वृद्धि माटे अत्यंत उत्कंठा जणाई आवे छे. आपे सुरत जेवा पौराणिक शहेरमां जैन यात्रालुओनी उतरवानी सगवड माटे जैन होल जेवू चंदावाडी नामर्नु मकान बंधाववा अने वधारवा पाछळ रु. ३००००)नो खर्च करी जैन कोम उपकार कयों छे ते आपनी जैन भाईओ प्रत्येनी उदार लागणी बतावे छे. आपणा जैनीभाईओने स्वधर्म संबंधी, राजकीय, वेद्यकीय, शिल्पशास्त्र, अने इंग्रजी गुजराती साहित्य वीगेरेनी उँचा दरज्नानी केलवणी प्राप्त करवामां अत्यावशक साधन जे बोर्डिंग स्कुल छे, ते मुंबई जेवा मोटा शेहेरमां श्वेतांबरी, दिगंवरीगो भिन्नभाव राख्या विना पोताना आशरे एक लाख रुपीयाने खरचे आपना . स्वर्गवासी पिताश्री सेठ हीराचंद गुमानजीना स्मरणार्थे आपे बांधी आपी समस्त जैन कोम ऊपर जे उपकार को छे ते प्रशंसनीय छे अने ते आपनी धर्म सहित ऊंचा धोरणनी इंग्रेजी केळवणी आपवानी अपक्षपात लागणी प्रदर्शित करे छे. तेमन गुजरातमां आपणी दिगंबर जैन कोममां केळवणीनो बहोळो फेलावो करवा माटे भोजन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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