SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 620
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग [ ५५३ तुमको जोर विघ्न आ सक्ते हों व जिससे तुम्हारा मन दुखता हो उन्हें मैं दूर करूंगा । इस उत्तरसे सर्वको सन्तोष हुआ | ता० २५ को गवर्नर साहब और उनकी पुत्रीने पहाड़के दर्शन किये और प्रसन्नता प्रगट की । ता. २६ को नीचे मंदिरजी के दर्शन करते हुए २० ) की भेट दी थी। इस कारण प्रांतिक समाने गवर्नर साहबको धनवाद दिया जो उन्होंने जैनियोंका जी न दुखाने का वचन दिया है । ता० १६ की रात्रिको महिला परिषदका एक बृहत् अधिवेशन हुआ । अध्यक्षस्थान सेठ माणिकचंदकी धर्मपत्नी श्रीमती नवीबाईने ग्रहण किया था। श्रीमती कंकुबाई, ललिताबाई व मगनबाई तीनों विद्यावती बहनोंन अनेक उत्तमोतम विषयों पर व्याख्यान दिये जिससे कई स्त्रियोंने गाला न गाने व रोने कूटनेका त्याग किय। । परोपकारिणी मगनबाईजीने पढ़ी हुई स्त्रियोंको श्रावकाचार नामकी पुस्तक भेटमें दी । ता० १७ फर्वरीको गुजरातके सर्व भाइयोंने सेठ माणिकचंदजीकी सेवामें चंदनके कास्केटमें निम्न लिखित मानपत्र अर्पण किया । नकल मानपत्र ( पावागढ़ ) झवेरी शेठ माणेकचंद हीराचंद जे. पी. नी पवित्रसेवामां प्यारा धर्म बंधु, • आजे अमो श्री गुजरात भागना दिगंबर जैनो आप साहेबनी स्वधर्म अने केलवणी प्रत्ये अत्यंत प्रीति देखीने आ मानपत्र आपवानी तक लइए छीए ते स्वीकारी आभारी करशो. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy