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अध्याय ग्यारहवां ।
संस्कृत श्लोक कहकर आशीर्वाद दिया । वहांसे मंडपमें आए. जिसमें सर्व दिगम्बरी कायदे से बैठे थे । प्रतिनिधियों से परिचित होने पर लाला सुलतानसिंह रईस देहलीने एड्रेस पढ़ा और मनोहर कास्केटमें भेट किया । यह कलकत्ते में बाबू धन्नूलालजीकी मार्फततय्यार हुआ था । इसके उत्तर में लाट साहबने एक स्पीच दी जिसमें जैनियोंको संतोष नहीं हुआ तथापि आखरी हुकम बंद रक्खा | लाट साहबके जानेपर तीन बजे बड़ी भारी सभा सेठ पूरणसाहके सभापतित्त्वमें हुई जिसमें व रातकी समामें पर्वत रक्षार्थ चंदे की उत्तेजना दी गई व पर्वत रक्षार्थ एक कमेटी बनाई गई जिसका मुख्य भार बाबू धन्नूचाल और सेठ परमेष्टीदासको दिया गया । लाट साहब चलते वक्त दिगम्बरियों से बात करनेको दो प्रतिनिधिके नाम मागे गए थे सो इन्हीं दोनोंके नाम सेठजीने भेज दिये तथा कलकत्ते में पर्वत रक्षाका दफ्तर हुआ जिसमें मौजीलाल क्लर्क जो बम्बई प्रान्ति सभामें था उसे नियत कर दिया ।
सेठजी शिखरजी से चलकर गयाजी होते हुए काशी आए । वहां ता० ३ सितम्बरको प्रथम वार्षिक
काशी स्याद्वाद पाठ - अधिवेशन था । यद्यपि सेठजीको चुन्नीलालशाला वार्षिकोत्सव जीके वियोगका बहुत दुःख था परंतु आप में सेठजी । स्याद्वाद पाठशाला के सभापति थे, आपने ही यह मिती नियत की थी इससे आपको आना ही हुआ । वास्तवमें सेठजीमें धर्म व जाति प्रेम ऐसा ही था जिससे वह अपने शोकादि कषायके निमित्तसे कभी धार्मिक कामों को बंद नहीं कर सक्ते थे । इस समय शिखरजीसे लौटते हुए
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