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________________ दानवीरका स्वर्गवास । तारीख सोलनी काळी रात्रे, हीरो गयो प्रभू पास - माणेक याचे जेठालाल प्रभू पासे, आप सुगति तत्काल दीर्घायुषी कर पूत्र तेनाने करवाने धर्म काज--माणेक विलाप । कुलभूषण दूषणरहित, हरन जाति संताप | दानवीर अति धीरचित, गये हाय! कित आप || छन्द राधिका ( २२ मात्रा ) कित गमन कियो हे ! जैनजाति उपकारी ! महसभा भई है आज, बिना सहकारी ॥ व्याकुल विछोहसे भये, सकल नर नारी । हग टपटप टपकत नीर, प्रकट दुख भारी ॥ २ ॥ तजि निज विलासता आप, स्वार्थ पर कीना । अरु त्याग रमासे मोह, दान बहु दीना ॥ आहार औषधी अभय, शास्त्र परचारी | अब कियो गमन कित 'दानवीर' पदधारी ॥ ३ ॥ जैन जातीसे । पुनि कीना बहु उपकार, अत्र त्याग तासुकी बांह, किस कारण से हुए देव, देव-पुर - चारी ॥ ४ ॥ जब यह अनुशासन प्रकट, हुआ सरकारी ! सम्मेद शिखर पर बनें, भवन सुखकारी ॥ वह आमिष भक्षण करें, केलि विस्तारें । तत्र होय वर्गकी नि, जीव बहु मारें ॥ ५ ॥ For Personal & Private Use Only Jain Education International [ ८३१ विविध भांती ॥ छोड़ मझवारी । 5 www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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