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अध्याय तीसरा ।
प्रकार आराम देनेवाली स्त्री है । पत्नी सहित पति जंगलमें भी हो तब भी वहाँ घरसाही आराम है और यदि पत्नी रहित पति व पति रहित पत्नी किसी ऊँचे बड़े भारी रत्न जड़ित महलमें भी रहते हों तो एक दूसरेके चित्तको साता नहीं । वास्तवमें पत्नी और पतिके युगलको ही गृहस्थ कहते हैं और यह एक दूसरेके सहायक हैं । पतिका काम बाहर घूमकर द्रव्य लाना है, पत्नीका काम आमदनीके भीतर घरका प्रबन्ध करना, सुन्दर स्वादिष्ट शरीरको लाभकारी भोजन तयार करना, वस्त्रादिको संवारना, घरके खर्चका हिसाब रखना, घरकी सफाई रखना, बच्चोंको पालकर प्रवीण करना, पतिको अपने मधुर मुखके हास्यमई व मिष्ट वाणीसे जैसे चंद्रमा कुमुदनीको प्रफुल्लित करे ऐसे रंजायमान करना, पतिके गृही धर्मके आचरणके पालनमें सहायता देना, व समय पाकर शिल्पादि द्वारा कारीगरीकी चीजें बनाना, तथा कभी काम पड़े और घरका खर्च अधिक हो तो उनको विकवाकर घरका काम चलाना आदि है। सच्ची पत्नी पतिके जीवनको आदर्श रूप बनाने में पूर्ण सहकारी होती है।
गुमानजीकी स्त्री पतिव्रता थी-पतिसे अतिशय प्रेम करती. थी-उनके मुखसे उनके मनकी बात समझकर उनके कहनेके पहले ही सर्व काम तय्यार कर देती थी, धर्ममें भी सहायक थी, रसोई भी शुद्ध बनाती थी, कुदेवोंकी भी भक्त न थी। ऐसी स्त्रीके प्रसंगको गुमानजी क्षणभर छोड़ना नहीं चाहते थे। यद्यपि गुमानजीके चित्तमें एकदफे यह बात आई कि यहाँसे चौगुणा खर्च सूरत नगरमें है। कदाचित वहाँ हम आमदनी ज्यादा न कर सके तब हम तो चने फाककर ही काट लेंगे परन्तु स्त्री होनेसे वड़ा भारी खर्च करना पड़ेगा तौभी आपने विचारा कि हमारी स्त्री बड़ी ही संतोषप्रिया
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