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________________ [ ८९ उच्च कुलमें जन्म। है। यदि हम सूखा खाएँगे तो उसे भी कोई इनकार न होगा। ठहरनेको मकान तो हमें रखना ही पड़ेगा इससे हर तरहं साथ ले जाना ही अच्छा है। तीसरे साहजीने यह भी विचार किया कि हमें बैल गाड़ी करके ही जाना है। हम दोनों एक गाड़ी कर लेंगे और धीरे २ रास्ते में भगवानके मंदिरोंके दर्शन करते हुए सूरत पहुंच जायंगे। ऐसा दृढ़ संकल्पकर विक्रम संवत १८४० अर्थात् इ० सन् १७८३में गुमानजी सपत्नी सूरत नगरको प्रस्थान कर गए । अपने रहनेका मकान अपना ही था उसे अपने कुटुम्बियोंके सुपुर्द कर दिया । अब भी यह मकान भीडरमें मौजूद है और गुमानजीके ही कुटुम्बीजन उसमें बास करते हैं। थोड़े दिनोंमें आप सूरतमें आ पहुंचे और वहाके श्री चंद्रप्रभुके बड़े जिनमंदिरजीमें जो अब चंदावाड़ीधर्मशासेठ माणेकचन्दके लाके पास है दर्शन करनेके लिये गए। भीडरमें पितामहका सूरत गुमानजी एक छोटेसे अफीमके व्यापारी थे। आना। इनकी सीधी आढ़त सुरतके किसी व्यापारीसे ___नहीं थी। आप दर्शन करनेके बाद जाप देकर स्वाध्याय करने लगे। पासमें और भी श्रावक शास्त्र पढ़ रहे थे। उन्होंने इनको मेवाड़ देशका निवासी तथा धर्मात्मा और चतुर जान · पूछा कि आपका कहा निवास है और कैसे आना हुआ ? गुमानजीने अपना सब हाल सरल मनसे कह दिया। वे श्रावक आजकल केसे रूखे मनके न थे, परंतु वात्सल्य गुणके धारी थे । इनको एक श्रावक बड़े आदरसे अपने घर ले गए और हर प्रकारसे खातिर की। गुमानजी अपने साथ अफीम भी लाए थे सो इनके सुपुर्द की। यह भी अफीमके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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