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________________ ९० ] अध्याय तीसरा | व्यापारी थे । भींडरकी ताजी अफीमको देखकर गुमानजी से भाव चुकाकर सबकी सब खरीद ली। गुमानजीको इस सौदे में दुगने से ज्यादा लाभ हुआ । उसी मंदिरजीके निकट एक छोटासा एक एकमंजला मकान खाली पड़ा था । उसीको भाड़े लेकर गुमानजी सपत्नी रहने लगे और बाज़ार में अफीमका व्यापार करने लगे । अब यह भींडरसे स्वयं. अफीम मंगाते थे और अच्छे भावोंसे बाज़ार में बेचते थे । अब ये दोनों बड़े सुखसे रहने लगे । भींडर में जो खचकी तंगी रहती थी वह भी मिट गई। यह अपने निकटके कुटुम्बियोंको भी खर्च के लिये भींडर रुपया भेजने लगे और कुछ दान पुण्य भी करने लगे । पूर्वोपार्जित पुण्यका इतना तीत्र उदय नहीं था: जिससे लक्षपति आदि तो नहीं हुए पर वर्ष में कुछ दान पुण्य करने के सिवाय दोसौ चारसों रुपये बचा भी लेते थे । गुमानजी के दिन सूरत में अपनी पतित्रता खीके साथ बड़े ही आनन्दसे बीतने लगे । सूरत में इनको बहुत दिन रहने के पीछे हीराचंद और वखतचंद दो पुत्ररत्नों का लाभ हुआ जिनमें हीराचंद : बड़े और वखतचंद छोटे थे । साह गुमानजीको पुत्रोंका लाभ | साह गुमानजी बड़े विचारशील थे और ब्रह्मचर्यका बहुत खयाल रखते थे | और उनका लग्न भी प्रौढ़ अवस्थामें हुआ था, वाल्यावस्था में नहीं । यद्यपि भींडर में बालविवाहका रिवाज भी था पर वह धनाढ्योंमें था । गुमानजी एक साधारण गृहस्थ थे इससे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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