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________________ संयोग और वियोग । [२५५ धक भी निर्णयसागर प्रेस बम्बईमें छपने लगा था। पं० धन्नालाल आदि सभासदोंने आदमी भेजनेकी आवश्यक्ता बताई । सभामें एक मदरदासजी थे। उन्होंने कहा कि ऐसी क्या जरूरत है ? यदि नहीं भेजे तो क्या नहीं चलेगा? तब सेठ हीराचंद सभापतिने समझाया कि दिगम्बर मतका अस्तित्व बतानेको व जैनमत नास्तिक नहीं है किंतु यही सांचा आस्तिक है आदमी भेजना ही चाहिये। दूसरी आवश्यक्ता यह है कि इस भारतमें हिंसा और प्राणीबध बहुत होता है तथा यहां जो वाइसराय आदि हाकिम आते हैं सो लंडनकी पार्लियामेन्टके हुकमके अनुसार सब कानून चलाते हैं । इसमें ७०० सभासद हैं जिनमें कई मांसाहार व मद्यपानके त्यागी हैं। सन् १८३२में वहां सिर्फ ७ आदनी मद्यके त्यागी थे सो सन् १८९२ में फक्त यूनाइटेड किंगडममें ७० लाख आदमी मबके त्यागी हो गए । मांसाहारकी सौगन्ध करनेवाले हालमें ३५०० आदमी हैं । इतना तो जैनियोंके प्रयत्न विना हुआ है। अत्र जो जैनीलोग वहाँ उपदेशक भेजेंगे तो कितने ही मद्य व मांसके त्यागी बन जायगे । जैन धर्मका व्यवहार चारित्र हिंसा मेटना व मद्य मांस छोड़ना छुड़ाना है सो अपना जनी उपदेशक पार्लियामेन्टके निप्पक्षपाती व कोमल हृदयी सभासदोंको जीव हिंसासे भारतमें हिंसा बंद होनेका कानून होजायगा । यह वात असाध्य नहीं है पर कष्ट साध्य है । तब मंदरदासजीने कहा कि रसोई पानीका आगबोटमें कैसे बनेगा इसपर सेठ गुरुमुखरायजीने कहा कि श्रीपाल राजा धवलसेठके साथ जहाजमें बैठकर कई महिने तक समुद्र में फिरा था सो वहां रसोई पानी सब कुछ उसका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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