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महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४२३ साथ पत्रव्यवहार करनेका काम सब यही करते थे और जो माल वहां बिकता था उसपर १) सैकड़ा कमीशन लेते थे। जब शीतलप्रसादने जानेका हठ नहीं छोड़ा तब अनन्तलालने कहा कि हमारे कामका कोई प्रबन्ध कर जाओ, तब अपने मित्र पुत्तनलाल अग्रवालको नियत करके शीतलप्रसादनी अपनी आवश्यक पुस्तकोंको लेकर बम्बई आए । जिस दिन सहारनपुरसे घूमते हुए माणिकचंद बम्बई पहुंचे उसी दिन यह भी पहुंचे । सेठजीको इन्हें देखकर बड़ा भारी हर्ष हुआ। सेठजीने अपने चौपाटीके बंगलेपर ही बड़े सन्मानके साथ खखा, तबसे यह वहीं मित्रके समान रहने लगे। अनन्तलालजीसे कभी २ माल मंगाकर व बाजारका माल लेकर यह घंटा दो घन्टा दलालीमें घूम लेते थे, शेष समय सेठजीके साथ विताते, उन्हीं के साथ रे भोजन करके दोपहरको गाड़ी पर दुकान आना, यहां धर्म सम्बन्धी पत्रव्यवहार करना और शामको व्यालके समय बंगलेपर आना, बाद सामायिक करके शास्त्र स्वाध्याय व सेठजीसे वार्तालाप करना । सेठ माणिकचंदजी अपने धर्ममित्रकी तरह बर्ताव करते थे, किसी प्रकारके सन्मानमें कभी नहीं करते थे। बम्बई पहुंचते ही सेठनीको दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभाके वा
र्षिक अधिवेशन स्तवनिधिपर जानेकी फिक्र स्तवनिधिपर सेठ- पड़ गई। यह अधिवेशन पौष सुदी १४ जीका गमन ता० ९ जनवरी १९०६ से माह वदी १
ता० ११ जनवरी तक होनेवाला था । सेठ माणिकचंदजी अपनी सुपुत्री मगनबाई सहित तथा बाबू शीतलप्रसाद और सेठ लल्लूभाई लक्ष्मीचंद चौकसीके साथ कोल्हापुर
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