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अध्याय दशवां । पधारे। उसी दिन स्टेशनपर मैसूरके श्रीमान् अनंतराज सेठ मोतीखनी म्यूनिसिपल कमिश्नर अपने भतीजे वर्द्धमानैया सहित पधारे । आपका स्वागत सेठ माणिकचंदनी आदिने बड़े हावभाव व गाजे बाजेके साथ किया। स्तवनिधि क्षेत्र कोल्हापुर शहरसे २८ मील है। यह स्थान
छोटी२ पहाड़ी व टीलोंसे तीन ओर घिरा स्तवनिधि क्षेत्रका हुआ है। इस क्षेत्रका असल नाम तपोहाल। निधि है, क्योंकि यहां जैन मुनि आकर
तप किया करते थे । इस पहाड़ीपर एक १० फुट लम्बी ३ फुट चौड़ी गुफा है, जिसमें श्री वईमानस्वामी मुनि बैठकर ध्यान करते थे, उनका इससे ३ वर्ष पहले देहान्त हो गया था। एक बड़ा मंदिरका घेरा है जिसमें ५ छोटे२ जिन मंदिर हैं। प्रथम मंदिरमें श्री पार्श्वनाथजीकी खड़गासन १ गन ऊंची प्रतिबिम्ब अति वीतराग स्वरूप है । इसीमें १ क्षेत्रपालका मंदिर है । इसकी मान्यता बहुत होती है तथा पहाड़पर भी एक क्षेत्रपालका मंदिर है जिसे ब्रह्मदेवका मंदिर कहते हैं। ता. ९ जनवरीको सभाकी प्रथम बैठक हुई। ३००० स्त्रीपुरुष एकत्र थे । सभापति अनंतराजय्याने आसन ग्रहण किया, पास ही सेठ माणिकचंदजी विराजे । वार्षिक रिपोर्ट मंजूर होते ही लोगोंने रुपया जमा कराना शुरू किया । रात्रिको तात्या केशव चौपड़े मिलौरी जिला सांगलीनिवासीने भजन व कीर्तनके साथ अच्छा उपदेश दिया व श्रीपालचरित्रका वर्णन किया। दूसरे दिन फिर सभा हुई। सभापतिने कनड़ी भाषामें
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