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________________ १२४ ] अध्याय तीसरा । निवटकर बैठे हुए थे तब एक मारवाड़ी शास्त्र के ज्ञाता उस मंदिरमें दर्शनार्थ आये । वे इस बालकको देखकर इसके पास बैठ गए और इससे धर्मकी चर्चा पूछने लगे। इस समय तक यद्यपि ये कुछ पढ़ते तो रहते थे, पर किसी प्रश्नका जवानी उत्तर नहीं दे सक्ते थे। उस विद्वान्ने इनको उपदेश दिया कि तुम नियमसे शास्त्रोंका स्वाध्याय क्रम क्रमसे किया करो और जो माणिकचंदका शास्त्र- बात न समझो वह किसीसे मालूम कर लिया स्वाध्याय प्रारंभ। करो । उसने कहा कि तुम श्रीपद्मपुराण और श्रीरत्रकरंड श्रावकाचारका स्वाध्याय पांच सात बार कर जाओ, तुम्हें बहुतसी चर्चा मालुम हो जायगी। माणिकचंद शुरूसे ही गुणग्राही थे। इस बातको इन्होंने पल्ले बांध उसी दिनसे श्रीपद्मपुराणका स्वाध्याय करना प्रारंभ कर दिया। माणिकचंदको गुजराती पुस्तक व समाचारपत्र वांचनेका भी शौक था। घरमें फुरसतके समय यह नाना प्रकारकी पुस्तकें पढ़ते थे तथा बम्बई में जब कभी व्याख्यान सभा सुनते थे, मौका निकालकर जाते थे और व्याख्यान सुनकर उसका सार ग्रहण करते थे और तीनों भाइयोंका इस तरफ कुछ ध्यान नहीं था। वे साधारण धर्मक्रिया व व्यापार धन्धेमें ही लीन थे। - संवत् १९२४ तक मोती पुरानेकी मजूरी करते रहे किन्तु बहुत सादगीसे रहने, किसी भी व्यसन मजदूरीसे व्यापारमें में न पड़ने और द्रव्यका व्यर्थ व्यय न करने आना। के कारण इनके पास इतनी पूंजी हो गई कि इन्होंने मोती पुरानेका काम छोड़ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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