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________________ • ~ ~ सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । । १२५ स्वयं संवत १९२५ में जवाहरातका व्यापार करना शुरू कर दिया। इस वक्त बम्बईमें यद्यपि नरसिंहपुरा जातीय स्ठ प्रेमचंद बम्बईमें बीमा हमड़ोंमें परम १. धरमचंद जौहरीका काम अच्छा चलता था न तो भी बीसा हमड़ दिगम्बर जैनियों में तो प्रथम जोहरी। सबसे पहले इन्होंने ही जौहरीका काम शुरू किया । पुण्यके उदयसे इनको व्यापार में दिनपर दिन लाभ होता गया । पिता हीराचंदके समान इनकी भी प्रवृत्ति दान करनेमें थी। इनमें सबसे अधिक रुचि दानकी तरफमाणिकचंदजी की थी। जो कुछ रुपया ये चारों भाई कमाते थे उसे पिताजीको पास सोपते थे, वे ही सब हिसाब रखते थे, तथा परस्पर यह भी ठहराव कर लिया था कि आमदनीमेंसे अमुक रकम धर्मादा खात अवश्य निकालना और इस रकममेंसे जब जैसा अवसर होता था दानमें विचारपूर्वक द्रव्यको लगाते रहते थे। संवत् १९२६ की दीपमालिकामें सेठ हीराचन्दने चिट्ठा बनाया और तब मालुम किया कि अब इतना द्रव्य हो गया है जिससे बम्बईमें दूकान खोली जा सकती है। परस्पर सम्मति करके दूकान खोलनेका निश्चय किया । उस समय यह विचार पड़ा कि दूकानका माणिकचंद पानाचंद क्या नाम रक्खा जावे। तब हीराफर्मका खुलना। चदनीने कहा कि जिनका पुण्य व तेज . प्रबल हो उन्हींके नामसे दूकानको चलाना चाहिये । मैं ऐसा पुण्यात्मा नहीं इससे मेरा नाम नहीं होना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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