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________________ १२६ ] अध्याय चौथा। . तब एकाएक मोतीचंद बोल ठे कि पिताजी ! हम सबमें पुण्याधिकारी, तेजस्वी और चतुर पानाचंद और माणिकचंद हैं इससे इन्हींके नामसे दूकानको प्रारंभ करना चाहिये । सर्वकी सम्मति इसीमें जमी और संवत् १९२७ में माणिकचन्द पानाचन्द जौहरी नामसे दुकान-कोठी स्थापित की। गुजरात देशमें पहले छोटेका फिर बड़ेका नाम रहता है । प्रायः जब किसीका नाम लेते हैं तो पिताके साथ ही लेते हैं, जैसे यदि माणिकचंदजीका नाम लेना होगा तो माणिकचंद हीराचंद नाम कहेंगे। शुभ मुहूर्त में जिनधर्मके अनुसार पूजा पाठ करके माणिकचंद पानाचंद जौहरी नामका फर्म कायम करके बड़ी सावधानीसे व्यापार करना शुरू किया गया। क्योंकि व्यापारी मंडलीमें प्रायः ऐसा होता है कि जब कोई नयी दूकान होती है तो दूसरोंको वह नहीं सहाती है और वे जिस तरह हो उसे हराना चाहते हैं। यदि व्यापारी चतुर होता है तो सर्व दूकानदारोंके ऊपर अपने व्यापारकी उत्तमता, दृढ़ता और सत्यतासे अपना प्रभाव जमा देता है और कुछ दिनोंके बाद उसका काम पक्का समझा जाता है । माणिकचंद और पानाचंद दोनों ही व्यापारमें बड़े ही कुशल थे। इनकी नजर व सचाई व विश्वासपात्रता पहलेसे ही मशहूर थी। इन्होंने दूकान करते ही अपना प्रभाव व्यापारियोंपर डाल दिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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