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सेठ माणिकचंदकी वृद्धि ।
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इनके हाथ मोतीका बहुत माल आने लगा और ये बहुत
नफेके साथ बम्बईके ग्राहकोंमें फिरकर व व्यापारमें कुशलता दलालोंके द्वारा बेचने लगे। सेठ पानाचंद सत्यता वन्याय- माल खरीदनेमें अति चतुर थे, परायणता। जबकि सेठमाणिकचंद माल बेच
नेमें अति प्रवीण थे। माणिकचंदकी बातपर ग्राहकोंको तुरंत विश्वास आजाता था और जो दाम यह बताते थे उसको सहन में मान लेते थे । माणिकचंदजीका सत्यवादीपना प्रसिद्ध था। अपनी बड़ी उमस्में जब कभी यह किसीको शिक्षा देते थे तो यही कहते थे कि सत्य बोलो, सत्यव्यवहार करो, सत्यसे ही प्रतीति होती है तथा मैंने सत्यसे ही रुपया कमाया है। व्यापारमें विश्वासपात्रताकी आवश्यकता है और वह प्रतीतिपना सत्य वचन और सत्य व्यवहारसे जमता है।
इस समय सेठ पानाचंद और माणिकचंद क्रमसे २२ और १९ वर्ष ही के थे, तथा मोतीचंद २४ और नवलचंद १६ वर्षके थे। चारों भाई मिलकर कोठीमें काम करते थे। किसी मुनीम गुमाश्तेको भी नहीं नियत किया था । सबने काम बांट लिया था। द्रव्य कमाते हुए रहते भी चारों ही भाई अपने पिताके अति दृढ़ उपदेशके कारण ब्रह्मचर्यमें दृढ़ थे। अभी तक इनमें से किसीका लग्न नहीं हुआ था, तौभी किसीको भी किसी खोटे मार्गमें जानेका व्यसन न था। पिताश्री अब भी इनको अपने हाथसे रसोई बनाकर खिलाते थे। इनको दूसरे किसी नौकरकी रसोई खाना व खिलाना
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