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________________ १२८ ] अध्याय चौथा । पसन्द न था। सेठ हीराचंद्रको अपने इन चार पुत्ररत्नोंको मेल मिलापके साथ रहते हुए व सदाचारमें चलते हुए व अपनी आज्ञाका उलंघन न करते हुए देखकर जो हर्ष होता था उसका अनुभव वास्तवमें उसी पिताको होसक्ता है जिसके ऐसे ही उद्योगी सदाचारी कई पुत्र हों। पाठकोंको इस बातको जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि सेठ हीराचन्दने २४ वर्षके पुत्रका भी अभी तक मेट हीराचंदजीको विवाह नहीं किया था। हीराचन्द चाहते तो प्रौढ़ विवाहका १२ वर्षकी उम्र में ही विवाह हो जाता, पक्षपात। पर सेट हीराचंद मामूली पुरुष नहीं थे। यद्यपि बाह्य दृश्यमें बहुत भोले और सौभ्य थे; तथा होंठ कटा हआ था सो कोई २ परोक्षमें 'होठ कटे' के नामसे भी पुकार देते थे तथापि अपने दिलमें संसार व व्यवहारको अच्छी तरह समझते थे। एक तो उनको यह विश्वास था कि प्रौढ़ अवस्था ही में लग्न करना चाहिये, दूसरे उनकी यह इच्छा थी कि हमारे पुत्र खूब व्यापारकुशल हों जिससे धनवान हो जावें । किसी बातकी कुशलता व प्रवीणताका लाभ भले प्रकार तब ही होता है जब बिलकुल एक चित्त हो उसीपर लक्ष्य दिया जावे । विद्यार्थी नगरसे एकान्त स्थलमें जब अभ्यास करता है तब उसका चित्त विद्या लाभमें निरन्तराय जमा रहता है । शहरमें या घर में रहकर पढ़नेवाले छात्र प्रायः मौज़शौकमें, सम्बन्धियोंके यहां जाने आनेमें, दावत रखनेमें, मेला ठेला देखनेमें, नाचरंग खेल कूदमें ऐसे लग जाते हैं कि सिवाय कुडके और सर्व अधपढ़े रह जाते हैं । ऐसी दशामें यदि उनकी लग्न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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