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________________ महती जातिसेवा द्वितीय भाग । [ ५७३ लाटको अर्जी भेजी । इसका अंतिम उत्तर आया कि सरकारने गोरखपुर जिले के खुखुंदो स्थान पर ६४ एकड़ जमीन जैन मंदिर, धर्मशाला, और बागकी अपनी आधीनताईसे निकाल दी है। ऐसी सूचना नं० २९९७ / ३६७ ता० १२ नवम्बर १९०८ में प्रगट की है। वास्में जो शांति व प्रभावके साथ उद्यम किया जाय . उसमें अवश्य सफलता होती है । भादों मास धर्मध्यान सहित पूर्ण होनेपर मिती आसोज सुदी १४ को बम्बई में सेठ माणिकचंदजी के सभाबम्बई में सभा । पतित्व में एक सभा हुई जिसमें सम्मेदशिखर सम्बन्धी हकीकत जो रांची में हुई थी सो सत्र वर्णन की गई । तथा फीरोजपुर छावनीके धर्मात्मा दानी लाला रामलालजी ( पिता लाला देवीसहाय ) की मृत्यु पर शोक प्रदर्शित किया गया। आपने शिखरजीकी रक्षा में बहुत मिहनत की थी। आप १००) मासिक जैन अनाथाश्रम हिसारकों देते थे। मरने के पहले १४३०४) रु० का दान कर ता० २ अक्टूबर १९०८ को परलोक सिधारे | इसमें १००००) रु० वास्ते धर्मशाला और जैनमंदिर स्टेशन ईसरी शिखरजीके मार्ग में, ५२५) जैन अनाथालय हिसार, २२५ ) के आटा चावल शिखरजी पर व २२५) हस्तनापुर के दीनोंको, १०१) अयोध्या व १०१) गिरनार के दीनोंको वटे; . २५००) रथ बनानेको, ५२५) जैनमंदिर रिवाड़ी, ११) पं० रिवाडीकी नसियां व ५१) गौशाला फीरोजपुर में दिये । सेठ साहबने आपके गुणोंकी सराहना करते सभा विसर्जन की । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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