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दानवीरका स्वर्गवास । [८४१ तीर्थोनुं रक्षण कयु, अनेक टंटा बखेडा पताव्या, ते महान् नरनो खाली अफसोस करी बेसी रहे ए शं आपणे माटे योग्य गणाय ? नहि, कदी नहिंज. त्यारे शु करवू ? स्मारक फंड खोलेलं छे तेमां नाणां मोकलवां के फंड गंजावर थाय तो तेमनी यादगीरी कायम
विनोदी. ( 'दिगंबर जैन' वर्ष ७ अंक ११)
हाय ! दुर्भाग्य ! न जाने जैन समाजका कैसा दुर्भाग्य है कि यह सदा किसी न किसी विपत्तिमें ही फंसी रहती है । इसके जीवनका एक एक पल शोक और दुःखमें ही वीतता है । इसके दुर्भाग्यसे प्रथम तो इसके जीर्ण रोगके दूर व रनेवाले वैद्यों का ही अभाव है, यदि दैवयोगसे मिल भी जाते हैं तो इसके तीत्र अशुभ कर्मोके उदयसे स्वयं वैद्यराज ही यम देवकी भेंट हो जाते हैं । किरने ही महापुरषोंने दृढ़ संकल्प किया कि हम इस जातिको शीघ्र दुःखावस्थासे निकालकर रोगसे मुक्त करेंगे, परंतु शोक है कि वे शीघ्र अकाल मृ युके ग्रास बन गए । अभी हम बाबू देवकुमारजी आदि महापुरुषोंका शोक न भूले थे और समाजमें उनकी त्रुटि पूरी न हुई थी कि यकायक एक दूसरी आपत्ति हम पर टूट पड़ी, जि ने सर्वत्र भारतमेंजैनसमानमें खलबली मचा दी । उत्तर से दक्षिण तक, पूर्वसे पश्चिम तक जैन संसारमें शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो श्रीमान् दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचन्द हीराचन्दजी जे. पी. बम्बई निवासीका यशस्वी नाम न जानता हो । नहीं २ जैन समाजका बच्चा २ आपके नामसे परिचित है। आपके उदारता, दयालुता
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