________________
१०८ ]
अध्याय तीसरा ।
1
मेटीके सहायक महामंत्री थे, तीर्थभक्त थे । इन्होंने मुरत के सर्वसे प्राचीन श्री शांतिनाथजीके छोटे मंदिरका जीर्णोद्धार संवत् १९९६ में कराया और इसका शिखर बंधवाकर घूमसे प्रतिष्ठा की थी ।
।
जन्म ।
मोतीचन्द जब ६ वर्षसे अधिकका होगया तब हीराचंदने इसको देशी निशालमें पढ़ने भेज दिया । पानाचन्द सेट नवलचन्दका और गोढ़के बच्चे माणिकचन्दको बिजलीबाई घर ही में नाना प्रकारकी उत्तम शिक्षा दिया करती थी । इतने में वह फिर गर्भवती हुई और संवत् १९११ में चतुर्थ पुत्ररत्नको उत्पन्न किया । इस समय भी पुत्रका लाभ देखकर माता पिताको बड़ा ही सुख भया । हीराचन्दने इसका नाम नवलचंद रक्खा | इसका जन्मपत्र भी इसके सौभाग्यवान और ऐश्वर्यवान होनेकी साक्षी देने लगा ।
इस तरह चार पुत्रोंसे सुशोभित होकर हीराचंद और विजलीबाई अपने घरको इसी तरह दीप्तमान मानने लगे जैसे राजा दशरथ और कोशल्या श्री रामचंद्र, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्नको देख कर आनन्दित होते थे ।
हीराचंद अब धर्ममें और अधिक प्रीति करते भए । अधिक समय श्रीजिनेन्द्रकी भक्ति व स्वाध्यायमें व्यतीत करने लगे । तृयीय पुत्र माणिकचंद को उंगली पकड़कर यह मंदिरजी ले जाते थे और अपने पास बिठालेते थे । यह बालक शुरुसेही बहुत विचारवान और शांत मिज़ाज़का था । रोना तो जानता ही न था । सच है जो अपने जीवन में महान कृत्य करनेवाले होते हैं उनकी शुरुसे ही उत्तम चेष्टा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org