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________________ दानवरिका स्वर्गवास । [८२५ कथे हाथीचंद्र मारा, शीरोमणी शाणा शेठ, दीननी उच्चारी वात, क्यारे दीले लावशो ? ५ हीराबाग बेठकमां, मीटींग भरेली रहे, देश ने विदेशना, भावे पधारे भेटवा; रीडिमां कुबेर सम, दान कर्णराय सम, बुद्धिमां अभयकुमार, प्रेमथी पधारता; पंडितोनो सुणी पाठ, प्रश्न पूछो प्रेमे करी, समाधान थाए पछी, शान्तिए सीधावता; कथे हाथीचंद्र मने, बतावो माणेक पिता, जैन जाति उन्नतिना, रसता बतावता. शान्ति सम दयावान, ढकाळमां दीधां दान, ठामठाम गामगामे, घास धन मोकल्यां; कमीटी सभाओ स्थापी, देशोदेश ज्ञान आपी, उंघथी जगाडी कोम, झाली रुडा हाथथी; श्रीमंतोने स्थान आप्यां,पंडितोने मान आप्यां, दरिद्रनां दुःख काप्यां, खरी धरी खतथी; कथे हाथीचंद्र थयु, वियोगे विशेष दु:ख, ___मेळाप थयो न मने, पूरवना पापथी. मंदिरनी अंदरमां, भावे जिनराज भनो, ___ पास आवे तेने बहु, प्यारथी बोलावता; देईने सुपात्र दान, मनुष्य मात्र देई मान, ___ वाणिज्य विद्या तणेरी, नीतिने बतावता; युनिव्रष्टि जैन ग्रंथ, प्रीते त्यां पढावा पंथ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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