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लक्ष्मीका उपयोग । [२२५ लाचार हो २१०० ) राजासे उधार लिये और मंदिरका काम चालू किया, इसनेहीमें राना पूनेमें गुजर गया तब भवानीप्रसादको श्वेताम्बरियोंने बहुत दिक किया एक रात्रिको भाटोंने इसे इतना पीटा कि यह विचारा अपनेको असहाय देखकर मंदिरकी कुंजियां आदि अपने नीचे जो एक श्वेताम्बरी पुनारी था उसे सौंपकर चल दिया। राजाके मरनेके बाद रियासतसे २१००) का व्याज सहित तकाजा होने लगा तथा जो जमीन राजाने दी थी पर लिखा पढी नहीं की थी उसके दाम मांगे जाने लगे। रियासतने २१००) के बदले उस पुरानी धर्मशालाको कबजे में कर लिया और उसमें एक मुसलमानको रख दिया था। ऐसे ही अवसर पर सेठनी पहुंचे थे सो इनको यहांकी व्यवस्था देखकर बहुत खेद हुआ। यात्रा करके सेठनी संवसहित भावनगर भी गए । वहाँके पंचोंको श्री सेव॒नयकी अव्यवस्थाके कारण बहुत धिक्कारा । वहाँके दि० लोग ऐसी गफलतमें थे कि भवानीप्रसादके स्थान पर किसी श्वेताम्बरी जैनको मुनीम रखनेका विचार कर रहे थे । सेठ माणिकचंदनीने उनको मना किया और यही जोर दिया कि किसी धर्मात्मा दिगम्बर जैनी ही को मुनीम रखना चाहिये जिससे तीर्थकी सुव्यवस्था हो ।
भावनगरवालों के पास पालीताना तीर्थके १८०००) रु. जमा थे पर उसको उपयोगमें न लगाकर केवल पैसा जमा करना ही जानते थे। वहाँ वालोंने सेठजीको कहा कि आप ही किसीको बताइये।
इतनेहीमें इनको सजोत निवासी धर्मचंद हधर्मचंदजी पालीता- रमीवनदासकी याद पड़ गई जिसने सेठजीको नाके मुनीम । त्यागी महाचंद्रनीका भनन भेजा था व जिसने
सुरतकी प्रतिष्ठा समय कहा था कि मुझे
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