SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ दानवीर माणिकचन्द्र । स्व० दा० जैन कुलभूषण सेठ माणिकचन्द्र हीराचन्द्र जौहरी जे०पी०बम्बईका संक्षिप्त जीवन चरित्र । अध्याय पहिला | जीवन चरित्रकी आवश्यकता | इ स संसार में कोई भी प्राणधारी एक पर्यायमें बहुत कालतक नहीं रहता । यह बात प्रत्यक्ष है कि लाखों कोशिशोंके किये जानेपर भी एक जीता जागता मानव, एक जगतके जीवोंका मित्र, एक अपनी शक्तियोंको परमात्म-भक्ति में व परोपकार - वृत्ति में लीन करनेवाला, यहां तक कि स्वयं सर्वज्ञ अवस्थाको प्राप्त होनेवाला इस पुद्गलके स्कंधोंसे रचे हुए शरीरमें अपनी आयु से अधिक रह नहीं सक्ता । मरण किसीको नहीं छोड़ता । किन्तु मरण उन्हींका मरणरूप है जो फिर अन्य शरीरको धारण करते हैं । जिन्होंने अपने आत्माके ऊपरसे कारण शरीर अर्थात कार्माण देहको या आठों कर्मों को जला डाला है और उसे शुद्ध निर्विकार ज्ञानानंदमय बना डाला है उनका यह शरीर-वियोग मरण नहीं किन्तु मोक्ष है । वे स्वाधीन, अव्यावाध, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003979
Book TitleDanvir Manikchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy