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महती जाति सेवा द्वितीय भाग । [ ५९९ शिकायेतीं चिट्ठियां सेठ माणिकचंदजीके पास बराबर आती रहीं । हिसाब व भंडारका भी कुछ पता नहीं । तीर्थक्षेत्र कमेटीने फार्म वार २ भेजे । सेठ चुन्नीलालने बहुत लिखा पढ़ी की पर फार्म हिसाबका भरकर नहीं पहुंचा । वहां सब जगह श्वेतांबर जैन पुजारी रक्खे हुए व मुनीम ब्राह्मण था । कटनीके संत्रकी ताकीदसे कमेटीने जब दिगम्बर जैन मुनीम भेजा तब उससे फौजदारी होगई । पर सेठजीने मुनीमको बराबर वहीं ठहरने दिया तथा उसको दूर कराकर परतापगढ़वालोंको वार २ लिखा गया कि ऐसी प्रबन्धका रिणी कमिटी बनाओ जिसमें बाहर के भी प्रतिष्ठित पुरुष हों व हिसाब बराबर प्रगट करो | कुछ भी सुनाई न होनेपर सेठजीने अप्रैल १९०९ में माष्टर दीपचंदजी उपदेशकको भेजा । यह १५ - २० दिन ठहरे, बहुत समझाया पर सफलता न हुई । पत्रोंके द्वारा बहुत धमकी देनेपर वहांसे शाह जवाहरलाल गुमानजी बम्बई एक नियमावली बनाकर लाये । इसको सहायक महामंत्री लाला प्रभूगालने ठीक कराई और कहा कि यही छपे व इसी तरह कार्रवाई हो, परंतु ऐसा न हुआ । उन्होंने मनमानी नियमावली छपवा दी व बाहरके मेम्बर प्रबन्धकारिणी से हटाकर जनरल सभा में कर दिये तथा ८ वर्षका एक हिमात्र भी संवत् १९५७ से १९६५ तकके जैनगजट ता० ८-९-०९ में प्रगट कर दिया। सेठजीने इन दोनोंको ठीक न समझा और परताबगढ़वालोंको लिखा कि आप गिरनारजी आवें मैं भी आता हूं। वहां हम आप मिलके प्रबन्ध करें । सेठजीने आसोज सुदी १५ ता० २८ अक्टूबर ०९ मिती कायम करके २२ दिन पहले परतावगढ़, भावनगर आदिके भाइयों को
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